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, दश-वैकालिक-सूत्र। अथ पंचम अध्ययन प्रथम उद्देश ।
ताहार निकट हते आहार्य ग्रहण । कभु ना करिवे जैन साधु विचक्षण ॥३५ जीवशून्य द्रव्य द्वारा, यदि लिप्त हय । आजन वाहस्त हाता, भिक्षार समय ।। उहाँदेर द्वारा गृही भिक्षा यदि देय। यदि ताहे अन्य कोन दोष नाहि रय ॥ सेइ भिक्षा साधुगण सादरे लइवे । सादा भिक्षार रीति साधुरा स्मरिवे ॥३६ एक सङ्गे दुइ व्यक्ति भोजने तत्पर । हेनकाले कोन साधु यदि अग्रसर । भिक्षार प्रार्थना करि दांडाय सम्मुखे। एक जन भिक्षादाने शुधु इच्छा राखे । ना लइवे सेइ भिक्षा.कमु साधुजन। द्वितीय व्यक्तिर भाव वुमिवे तखन ॥३७ एक सङ्गे दुइ व्यक्ति भोजने वसिया। भिक्षादाने इच्छा करे भिक्षुक देखिया॥ यदि अन्य कोन दोष ना थाके तखन। सेइ भिक्षा साधु जन करिवे ग्रहण-1॥३८ अपरेर संगृहीत, लये गर्भवती। मिठाई मिष्टान्न द्रव्य पानीय प्रभृति ।।
भोजनेः प्रवृत्त. यदि मनेर हरपे। :. आकण्ठ,पुरिया खाय सन्तानेर आशे॥ .