Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
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स्वोपज्ञभाष्ययुतं
[ गाथा फिडितुस्सग्गे एके, पमाइणो सोहि होति णिव्विगति । दोहिं पुरिमड़ भवे, तिहि फिडिए सोहि भत्तेकं ॥१७५३॥ सव्वे काउस्सग्गे, फिडिए जुयओ पडिकमे जो तु । सोही पच्छाऽऽयाम, उस्सारते इमं वोच्छं ।।१७५४॥ सतमुस्सारे एक, काउस्सगं ति एत्थ णिविगति । दोसु तु पुरिम भवे, एक्कासणयं भवे तीहिं ॥१७५५।। सव्वे सतमुस्सारे, आयंबिल एत्थ होति सोही तु । भग्गे वि य एस चिय, सोही तह वंदणमदेन्ति ॥१७५६॥५२॥ अकएसु तु पुरिमा-ऽऽसणमायामं सव्वसो चउत्थं तु । पुवमपेहितथंडिल, णिसिवोसिरणे दियासुवणे ॥५३ ण करेंतस्सुस्सग्गं, सोही एत्थं तु होइ पुरिमई । दोहि य एकासणय, तिहिं अकरणे सोहि आयाम ॥१७५७॥ सव्वं चिय आवसयं, अकरेन्ते सोहि होयऽभत्तहो । काउस्सग्गे तह वंदणस्स सोही तहा[s] करणे ॥१७५८॥ गाहापच्छद्रेण तु, पुव्वं तु अपेहिए उ थंडिल्ले । णिसिवोसिरणे सोही, साहुस्स भवे अभत्तहँ ॥१७५९॥ दियसुवणे णिकारणे, सोही साहुस्स होयऽभत्तह्र । कोहं परिवसमाणे, ककोल्लादीमतो वोच्छं ॥१७६०॥५३॥ कोहे बहुदेवसिए, आसव-कक्कोलगादिएसुं च । लसुणादी पुरिमडूं, तण्णादीबंधमुयणे य ॥५४॥ पक्खियमतिकामन्तो, बहुदेवसिओ त्ति एस कोहो तु । अहवा बहुदेवसिए, चाउम्मासादिरित्ते तु ॥१७६१॥ एयं बहुदेवसियं, एत्थ उ सोही तु होइ भत्तहूँ । आसको वियर्ड भण्णति, तमाइयंते अभत्तहँ ॥१७६२॥
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