Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi

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Page 189
________________ १७० स्वोपज्ञभाष्ययुतं [ गाथा भण्णति सुणसू चोदग!, जह संतेहिं अचेला उ ॥१९७६॥ सिस्सावेढियपोति, णतिसंतरणम्मि णग्गयं बेन्ति । जुण्णेहिं णग्गिय म्हि, तुरसालिय ! देहि में पोत्ती ॥१९७७।। जुण्णेहिं खंडिएहि य, असव्वतणुपाउएहिं ण य णिचं । संतेहिं वि णिग्गंथा, अचेलगा होति चेलेहिं ॥१९७८॥ एवं दुग्गयपहिया, वञ्चेलया होंति ते भवे बुद्धी । ते खलु असंततीए, धरंति ण तु धम्मसद्धाए ॥१९७९॥ सति लाभम्मि साहू, गेण्हन्तऽसहट्टणाई ताई तु । ताणि वि खण्डियमादी, धरेन्ति तह धम्मबुद्धीए ॥१९८०॥ आचेलुक्को धम्मो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्सा । मज्झिमगाण जिणाणं, होति सचेलो अचेलो वा ॥१९८१॥ पडिमाए पाउया वा, णतिकमंते तु मज्झिमा समणा । पुरिमचरिमाण सहणट्टणा तु भिण्णाणिमो मोत्तुं ॥१९८२॥ णिरुवहयलिंगभेदो, णिकारणयो ण कप्पये कातुं । किं पुण तं णिरुवहयं ?, भण्णति अहजायलिंगं तु ॥१९८३॥ जम्मं दुविहं होति, मातृकुच्छिम्मि पढम जं जम्मं । भवसंसारचउक्के, णिप्फिडितो बितिय पव्वज्जं ॥१९८४।। तस्स इमे भेदा खलु, खंधदुवारे य समणे पाउरणे । गकलद्धंसे पट्टे, लिंगदुवे या इमा भयणा ॥१९८५॥ गिकारणयोलहुओ लहुओ लहुगा, तिसु चतुगुरुगा य हौति बोद्धव्या । गिहिलिंग अण्णलिंगे, दोमु वि मूलं तु बोद्धव्वं ॥१९८६॥ कुविन्ज कारणे पुण, भेदं लिंगस्सिमेहि कज्जेहिं । गेलण्ण रोग लोए, सरीरवेयावडियमादी ॥१९८७॥ अहवा इमेहि कारणेहिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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