Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
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स्वोपज्ञभाष्ययुतं
[ गाथा तवबलिओ देह तवं, अहं समन्थो त्ति गबिओ एस । तवअसमत्थ गिलाणो, बालादी अहव असमत्थो ॥२२८०॥ जो उ ण सद्दहति तवं, अहवा वी जो तवेण ण वि दम्मे । अतिपरिणामो जो तू , पुणो पुणो सेवति पसंगी॥२२८१॥ उत्तरगुण बहुगा तू, पिंड विसोहादिगा उणेगविहा । भंसेति विणासेती, पुणो पुणो जो तु ताई तु ॥२२८२॥ छेदावत्तीओ वा, पकरेंति पसज्जती य जो तेसुं। अहुणा पासत्थादी, आदीसहेणिमाईसु ॥ २२८३।। पासत्थोसण्णो वा, कुसील संसत्त अहव णीओ वा। वेयावच्चकराइण, जतीण पडितप्पिओ बहुसो ॥२२८४॥ उकोसा तवभूमी, आदिजिणिदस्स होति वरिसं तु । मज्झिमगाण जिणाणं, अट्ठ उ मासा भवे भूमी ॥२२८५।। चरिमस्स जिणिदस्सा, उक्कोसा भूमि होति छम्मासा। एयं तू उकोसं, समतीओ चरणसेसो य ॥ २२८६।। एव जहुद्दिवाणं, तवगन्धियमादियाण सव्वेसिं । छेदं पणगादीयं, देजा जा धरति परियाओ ॥२२८७॥
छेदारिहं गयं ॥०२ ॥ ८२ ।। मूलप्रायश्चित्तम्
आउट्टियाय पंचिंदियघाते मेहुणे य दप्पेणं । सेसेसुक्कोसाभिक्खसेवणादीसु तीसुं पि ॥३॥ आउहि उवेच्चा तू , पंचिंदि वहेति मिहुण दप्पेणं । सेस वय मुसाऽदिन्नं, परिग्गहो चेव णादब्बो ॥२२८८॥ एतेसुक्कोसाणिं, पडिसेवयऽभिक्खणं तु मिच्छा तु । एतेंसिं सव्वेसिं, मूलं तू होति दातव्वं ॥२२८९॥०३॥८॥ तवगवियादिएसु य, मूलुत्तरदोसवतियरगएसुं। दसणचरित्तवन्ते, चियत्तकिच्चे य सेहे य ॥४॥
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