Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
View full book text ________________ રરક स्वोपज्ञभाष्ययुतं जीतकल्पसूत्रम् / एवं देजा सुपरिक्खियस्स णऽनस्स जीतववहारं / अणरिहदेन्ताऽऽरोवण, आणादी जं च पाविहिती // 2599 // पंचमहव्ययभेदो, छक्कायवहो य तेणऽणुण्णाओ। मुहसीलणीयगाणं, कहयति जो पवयणरहस्सं // 2600 // आमे घडे णिहितं, जहा जलं तं घडं विणासेति / इय सिद्धंतरहस्स, अप्पाहारं विणासेति // 2601 // मरेज सह विजाए, काले णं आगए विद / अपत्तं तु ण वाएज्जा, पत्तं च ण विमाणए // 2602 // बितियपए वाएज्जा, अद्धाणादीहि कारणज्जाए। बहुसो तप्पिस्सति वा, वेयावच्चादिणा अम्हं // 2603 // अप्परगंथ महत्थो, इति एसो वण्णिओ समासेणं / पंचमतो ववहारो, नामेणं जीयकप्पो त्ति // 2604 // कप्प-व्यवहाराणं, उदहिसरिच्छाण तह णिसीहस्स / सुतरतणबिन्दुणवणीतभूतसारेस णातब्बो // 2605 // कप्पादीए तिण्णि वि, जो सुत्तत्थेहि माहिती णितुणं / णिगदिस्सति सो एयं, सीसपसोसाण ण हु अण्णो // 2606 // ॥सु०३ // 10 // वसनगानासन जीतकल्पसूत्रं सभाष्यं परिसमाप्तमिति // GH सपत 88. // ससूत्रस्य भाष्यस्य गाथाः 2709 // // ग्रन्थाग्रम्-श्लोकसंख्या 3200 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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