Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
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१.२०
स्थोपज्ञभाष्ययुतं
[गाथा छल्लहुयाढत्तम्मी, ठायति लहुए तु भिण्णमासम्मि । चतुगुरुआढत्तम्मी, अन्नम्मी ठाइ गुरुवीसे ।।२.२२१॥ चतुलहुए वीसाए, गुरुमासे ठाति पण्णरसहि तु ।
('गुरुमासे ठाति गुरुग पण्णरसे' इति प्रत्यन्तरे) लहुए लहुपण्णरसे, गुरुभिण्णे ठाति गुरुदसहिं २२२२!! लहुभिण्णे दसलहुए, गुरुवीसा अंते ठाति गुरुपणए । लहुवीसा आढत्तं, अंतम्मी ठाति लहुपणए ॥२२२३॥ पण्णरसहि गुरुएहिं, अंतम्मी अट्ठमम्मि ठायति तु । पण्णरसहिं लहुएहि, अंतम्मी ठाति छट्टम्मि ॥२२२४॥ दसगुरुए आढत्तं, अंतम्मी ठायती चतुत्थम्मि । दसलहुए आढत्ते, ठायति तू अंते आयामे ॥२२२५।। गुरुपणए आढत्ते, एकासणयम्मि अंते ठायइ तू । लहुपणए आढत्ते, अंतम्मी ठाति पुरिमड़े ॥२२२६॥ अहमभत्ताऽऽढतं, अंतम्मी ठायई अणिबिगती। जंतविहीपत्थारो, समासतो एसमक्खातो ॥२२२७॥ एयं तु अजयणाए, साविक्खाणं तु होति पच्छित्तं । अह गीयत्थो सेवे, कारण जतणाए तो सुद्धो ॥२२२८॥ एयं तु कारणम्मी, जतणासेविस्स वणियं दाणं । अहवा वि इमं अण्णं, आयरियादी जहाकमसो । २२२९॥ आयरिय उवज्झाए, कतकरणे अकतकरण दुविहा तु । भिक्खुम्मि अभिगते या, अणभिगते चैव दुविहो तु ॥२२३०॥ अभिगते कत अकते या, अणभिगते थिरे तहेव अथिरे य । थिर कतकरणे अकते, अथिरे कतकरणमकए य ॥२२३१॥ एते सव्वेऽवेगं, आवत्ती पंचराइगाऽऽवण्णा । तं पणगं अविसिह, चउत्थमादीहिं विण्णेयं ॥२२३२॥
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