Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
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१८८
स्वोपज्ञभाष्ययुतं
[ गाथा एत्थपुण बहुतरा भिक्खुणात्तिअकयकरणाणभिगयाय
जंतेण जीतमट्ठमभत्र्ततमविगतिमादीयं ॥७३॥ जीतयन्त्रविधिः एत्थं इमम्मि जीए, बहुतरया भिक्खुणो भवंती तु ।
अकयकरणा उ जे तू , अणभिगया चेव णायव्वा ॥२१९६॥ चस्सद्देण थिराथिर, गहिया तू एत्थ तू समासेणं । जंतयविहीकमेणं, जीयाभिमएण देज्जाहि ॥२१९७॥ कतकरण अकयकरणा, कयकरणा गच्छवासि इयरे य ! अकयकरणा तु णियमा, णायव्वा गच्छवासी तु ॥२१९८॥ ते अभिगत अणभिगता, अणभिगता थिराऽथिरा व होजाहि । कत अभिगत जे सेवे, अणभिगते अत्थिरे इच्छा ॥२१९९॥ अहवा णिरवेक्खियरा, दुविहा पुरिसा समासतो होति । णिरवेक्खो जिणमादी, ते णियमा होति कतकरणा ॥२२००॥ सावेक्खा होति तिहा, आयरिय उवज्झ भिक्खुणो चेव । कतकरणमकतकरणा, आयरिया चेवुवज्झाया ॥२२०१॥ भिक्खू गीयाऽगीया, गीयत्थ थिराऽथिरा य बोद्धव्या । कतकरण अकतकरणा, एकेका होन्ति ते दुविहा ॥२२०२।। अग्गीया वि थिराऽथिर, कयाऽकया चेव होंति एकेका । कतकरण अकतकरणा, केरिसया होंति ? सुणसु इमे ॥२२०३॥ छ?ऽढमाइएहिं, कतकरणा ते तु उभयपरियाए । अभिगत कतकरणत्तं, जं जोग तवारिहा केवी ॥२२०४॥ णिरवेक्खा एगविहा, सावेक्खाणं तु किं णिमित्तेणं । तिविहो भेदो तु कतो, आयरियादी ? इमं सुणसु ॥२२०५॥ भण्णइ जुवरायादी, वत्थुविसेसेण दंडो जह लोए । तह वत्थुविसेसेणं, आयरियादीण आरुवणा ॥२२०६।। आयरिय-उवज्झाया, दोणि वि णियमेण होति गीयत्था । गीयत्थमगीयत्था, भिक्खू पुण होंति णातव्या ॥२२०७॥
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