Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
View full book text ________________
७०-७१ ]
जीतकल्पसूत्रम् । कप्पट्ठियादयो वि य, चतुरोजे सेतरा समक्खाता। सावेक्खेतरमेयादयो य जे ताण पुरिसाण ॥७१।। कप्पट्टिता परिणता, कडजोगी चेव होन्ति तरमाणा। पडिपक्खेण चि चतुरो, अकप्पट्टियमादि णातव्या ॥१९६५॥ पतिट्ठा ठवणा ठवणी अवस्था संठिती ठिती । अवस्थाणं अवत्था या, एगट्ठा चिट्ठणा ति य ॥१९६६।। सामायिए य छेदे, णिव्विसमाणा तहेव णिव्वि। जिणकप्पे थेरेसु य, छविह कप्पद्विती होति ॥१९६७॥ सो पुण ठिती मज्जायाणासो कप्पो य होति कतिहा उ ?। भण्णति सो दसभेदो, इणमो वोच्छं समासेणं ॥१९६८॥ आचेलक्कुद्देसिय, सेज्जायर रायपिंड कितिकम्मे । वत जेट्ट पडिकमणे, मासं पज्जोसवणकप्पे ॥१९६९॥ कतिहिं ठिता अठिता वा, सामायिककप्पसंठिती णियमा ?। कतिठाणपतिहो वा, छेदोवट्ठाणकप्पो उ ? ॥१९७०।। चतुहि ठिया छहिं अठिया, सामातियसंजया मुणेयव्वा । दससु वि णियमा तु ठिता, छेगोवट्ठा मुणेतव्वा ।।१९७१॥ सेज्जातरपिंडे या, कितिकम्मे चेव चाउजामे य । पुरिसज्जे य तहा, चत्तारि अवट्ठिया कप्पा ॥१९७२॥ आचेलक्कुद्देसिय, रायपिंडे तहा पडिकमणे । मासं पज्जोसवणाकप्पे तऽणवहिता कप्पा ॥१९७३॥ दसठाणठितो कप्पो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । आचेलकादीमुं, तेसिं तु परूवणा इणमो ॥१९७४॥ दुविहा होति अचेला, संताचेला असंतचेला य । तित्थगरऽसंतचेला, संताचेला भवे सेसा ॥१९७५॥ संतेहिं वि चेलेहि, किह पुण समणा अचेलया होन्ति ? ।
आचेलक्यम्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243