Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi

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Page 196
________________ ७१ १७७ जोतकल्पसूत्रम् । अममत्त-अपरिकम्मो, उवस्सओ एत्थ भंगया चतुरो । उस्सग्गेणं पढमो, तिण्णि तु अववायओ भंगा ॥२०६२॥ भत्तं लेवकडं वा, अलेवकडं वा वि ते तु गेण्हंति । सत्तहि व एसणाहिं, सावेक्खो गच्छवासो त्ति ॥२०६३॥ अहलंदियाण गच्छे, अप्पडिबद्धाण जह जिणाणं तु । णवरं काले विसेसो, उदुमासो पणग चतुमासो ॥२०६४॥ गच्छे पडिबद्धाणं, अहलंदीणं तु अह पुण विसेसो । जो तेसि उग्गहो खल्लु, सो साऽऽयरियाण आहवति ॥२०६५।। एगवसहीए पणगं, छब्बीहीओ य गाम कुव्वंति । दिवसे दिवसे अण्णं, अडंति वीही तु णियमेणं ॥२०६६॥ परिहारविसुद्धीणं, जहेव जिणकप्पियाण णवरं तु । आयंबिलं तु भत्तं, बोद्धव्यो थेरकप्पो तु ॥२०६७।। अजाण परिग्गहियाण उग्गहो जो तु सो हु आयरिए । कालतो दो दो मासा, उदुबद्धे तासि कप्पो तु ॥२०६८॥ सेसं जह थेराणं, पिंडो य उवस्सयो य तह तासि । सो सम्बो वि य दुविहो, जिणकप्पो थेरकप्पो य ॥२०६९॥ जिणकप्पियऽहालंदी, परिहारविसुद्धियाण जिणकप्पो । थेराण अज्जियाण य, बोद्धव्वो थेरकप्पो तु ॥२०७०।। दुविहो उ मासकप्पो, जिणकप्पो चेव थेरकप्पो य। णिरणुग्गहो जिणाणं, थेराण अणुग्गहपवत्तो ॥२०७१॥ उदुवासकालऽतीए, जिणकप्पीणं तु गुरुगो गुरुगा य । होति दिणम्मि दिणम्मी, थेराणं ते चिय लहू उ ॥२०७२॥ तीसं पदाऽवराहे, पुट्ठो अणुवासियं अणुवसंता । जे नत्थ पदे दोसा, ते तत्थ ततो समावण्णो ॥२०७३॥ पण्णरसुग्गमदोसा, दस एसणदोस एय पणुवीसं । संजोयणाइ पंच य, एते तीसं तु अवराहा ॥२०७४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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