Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi

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Page 172
________________ ५७-५९ ] जीतकल्पसूत्रम् । पत्तेयं पत्तेयं, सोहेल्थं पंचकल्लाणं ॥१७८३॥ चाउम्मासिय वरिसे, णिरतियारे यऽवस्स दायव्वं । आलोइयम्मि सोही, णियमेणं पंचकल्लाणं ॥१७८४॥ किं कारणमिह सोही, णिरतियारे वि दिज्जए एवं ?। चोयग ! मुहुमअतियारे,कए विण वि जाणति कयाति।।१७८५॥ अहव ण संभरती तू , जह पायोसीय अडरत्तीए । वेरत्तिय पाभाइय, अग्गहणा काल अतियारं ॥१७८६॥ मुत्तत्थपोरिसीअकरणम्मि दुप्पेह दुप्पमज्जासु । एतेण कारणेणं, सोही तू पंचकल्लाणं ॥१७८७.१५८॥ छेदादिमसदहयो, मिउणो परियायगव्वियस्स विय। छेदातीए वि तवो, जीएण गणाहिवइणो य॥५९॥ विपुलं तवमकरेंतो, किह सुज्झति छेदमूलमेत्तणं ? । गुरुआणामेत्तेणं, असद्दहते तवो देयो ॥१७८८।। मतुओ वि छेद मूले, व दिज्जमाणम्मि होति परितुह्रो । इहरा वि वंदणिज्जो, तिक्खुत्तो तस्स देह तवं ॥१७८९॥ दुविहो य गविओ खल्लु, चिरपरियाओ तहेव तवबलिओ। छेदम्मि दिजमाणे, परियादी गविओ होति ॥१७९०॥ केत्तियमेत्तं छिदिह ?, तह वि य ई तुब्भ होमि राइणिओ। एसो उ गविओ खलु, चिरपरियादी मुणेयव्वो ॥१७९१॥ तवबलिओ देह तवं, अहं समत्थो त्ति गविओ होति । तम्हा तद्दोसहरं, विवरीयं तेसि दातव्वं ॥१७९२॥ गणअहिवति आयरियो, तस्स वि छेदादि होति पत्तस्स । अप्परिणयसेहादिसु, मा होज्जा हीलणिज्जो त्ति ॥१७९३॥ धीवलसंघयणं वा, णातुं कालं च तिविह गिम्हादी। तम्हा तद्दोसहरं, तबारिहं दिज्जए तस्स ॥१७९.४॥५९|०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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