Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi

View full book text
Previous | Next

Page 173
________________ स्वोपज्ञभाष्ययुतं [गाथा जं जं ण भणियमिहतिं, तस्सावत्तीय दाणसखेवे। भिण्णादिया य वोच्छं, छम्मासन्ता य जीएण।।६०॥ जं जंति होति विच्छा, ण वि भणियमिहं ति जीतववहारे । पच्छित्तविसोही तू, तस्सावत्ती पणगमादी ॥१७९५॥ दाणं णिव्वितिगादी से य विसेसेणमेत्थ भणिहामि । संखेवो तु समासो, किह ण वि जीएण भणितमिहं?॥१७९६॥ कम्ही वा भणियं ? ती. गुरुराह णिसीह कप्प ववहारे । सुत्तत्थयो य भणियं, आणादि सवित्थरेणं तू ॥१७९७॥ पणगादी छम्मासावसाण आवत्तिविरयणाओ य । णेगविहा भणिता उ, णिसिहादिसु वित्थरेणं तु ॥१७९८॥ इह पुण जीएणं तू, णिवणावत्तिदाणसंखेवं । भिण्णादी छम्मासा, णेदाणजिएणिमं वोच्छं ॥१७९९॥६०॥ भिण्णो अविसिट्टोच्चिय,मासोचउरोय छच्चलहगुरुगा। णिव्वितियादी अट्ठमभत्तन्तं दाणमतसिं ॥६१॥ पणुवीस दिणा भिण्णो, अविसिट्ठो एस गुरु लहू वा वि । अविसेसिओ विसिट्ठो, एसो तू होति णायव्वो ॥१८००॥ मासो लहुओ गुरुओ, चतुरो मासा य होन्ति लहुगुरुया। छम्मास्सा लहुगुरुगा, दाणं एतेसि वोच्छामि ॥१८०१॥ पणगं दस पण्णरसं, वीसा पणुवीस जाव णिव्विगती । लहुमासे पुरिमई, गुरुमासे दाण भत्तिकं ॥१८०२।। चउलहुए आयाम, चउगुरुए होति दाण भत्तहूँ । छल्लहूए छठें तू, छग्गुरुए दाणमट्ठमयं ।।१८०३॥ णिव्विगतिगमादीय, अट्ठमभत्तन्तमेय दाणं ति ! भिण्णादीणं कमसो, छम्मासंताऽवसाणाण ।।१८०४॥६॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243