Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi
View full book text ________________
६५-६७ ]
जीतकल्पसूत्रम् ।
गिम्ह - सिसिर - वासासू, देज्जऽट्टम - दसम - बारसंताई । णातुं विहिणा णवविहसुतववहारोवदेसेणं ॥ ६७॥ गिम्हासु चतुत्थं देज्जा, छटुं च हिमागमे ।
वासासु अट्टमं दिज्जा, तत्रो एस जहण्णओ ॥ १८२४॥ गिम्हासु छहं देज्जा, अट्टमं च हिमागमे ।
वासासु दस देज्जा, एस मज्झिमओ तवो ॥। १८२५ ।। गिम्हासु अट्टमं देज्जा, दसमं च हिमागमे । वासा दुवालसमं, एस उक्कोसतो तवो ॥१८२६॥ जहासंखेणेसो, गिम्हादितवो समासतो होति ।
पुण कह दिज्जा ?, नवविहसुत्तोवरसेणं ॥ १८२७॥ सुतववहारेणऽहवा, णवभेदवियप्प मुहुम जाणित्ता ।
जाहि तिहिकाले, ववहारो सो इमो णवहा || १८२८ ।। अहलहुसग लहुसयरो, लहुसो त्ती होति लहुसपक्खमि । अहलहुओ लहुयतरो, लहुओ ती लहुयपक्खम्मि || १८२९ || गुरुयो गुरुयतराओ, अहगुरुओ एस होति गुरुपक्खे | ववववहारेसो, आवत्ती तेसि वोच्छामि ॥ १८३०॥
पण दस पण्णरसं वा, तिविहेसो होति लहुसपक्खमि । वीसा य पण्णवीसा, तीसा वि य लहुगपक्खमि ॥ १८३१ ॥ गुरुमासो चतुमासो, छम्मासो चेव होति गुरुपक्खे | नवविह आवत्तेसा, णवविहदाणं अतो वोच्छं || १८३२ ॥ निव्विगतिं पुरिम, एक्कासणयं च लहुसपक्खम्मि | आयंबिल भरा, छ वा होति लहुपक्खे ॥ ९८३३ ॥ अट्टम दसम दुवालस, गुरुपक्खे एय होति दाणं तु । आवत्ती तवो एसो, समासतो णवहमक्खातो ॥ १८३४ ||
Jain Education International
For Private Personal Use Only
१५७
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243