Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi

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Page 185
________________ १६६ स्वोपज्ञभाष्ययुतं [ गाथा अहगुरुए गिम्हासुं, उक्कोसजहण्णए चउत्थं तु । उक्कोसमज्झ छहूं, उक्कोसुक्कोसमहमगं ॥ १९३२ ॥ नवविह ववहारेसो, आवत्ती दाणसहियकालजुओ । बुद्धीए विष्णेयो, विभागतो एसमक्खातो ॥ १९३३ ॥६७॥०॥ Jain Education International गिलाणाभावम्मि देज्ज हट्ठस्स ण तु गिलाणस्स । जावतियं वा विसहति तं देज्ज सहेज्ज वा कालं ॥ ६८ ॥ भावं पहुच अहियं, देज्जाही हट्ट - बलिय- णिरुयस्स । गिलाणस्स तु ऊणतरं, ण व देज्ज सहेज्ज वा कालं ॥। १९३४ ॥ असुभ सुभो वा भावो, लेस्साभेदेण होति णायव्वो । तिव्वो तिव्वतरो वा, तिव्वतमो एव मंदो वि ॥ १९३५ ॥ पण वि सेवियम्मी, चरिमं भाओ उ केइ पार्वति । चरिमाओ वा पणगं, एवमिणं भावणिष्कण्णं ॥ १९३६ ॥ भावेत्ति गतम् । पुरिसं पडुच्च अहियं, ऊणं वा दिज्ज अहव तम्मत्तं । ते पुण पुरिसादीया, इमे समासेण णायव्वा || १९३७।६८।। पुरिसा गीतागीता, सहासहा तह सदासदा केति । परिणामाऽपरिणामा, अतिपरिणामा अवत्थूणं ॥ ६९ ॥ केयी पुरिसा गीता, केयि अगीयत्थ होंति जातव्वा । धिति - संघयणादीहि, केइ सहा केइ तू असहा || १९३८ ॥ मायावी होन्ति सढा, असढा पुण उज्जुपण्ण णेतव्वा । परिणामक- परिणामादी इणमो, समासतोऽहं पवक्खामि ॥। १९३९ ।। अपरिणामक परिणामा अपरिणामा, अतिपरिणामा य वत्थु चरिमदुए । अवादीदिता, होति विभागो इमो तेसिं ॥। १९४० ।। जो दव्वखेत्तकयकालभावयो जं जहा जिणक्खायें । तं तह सद्दहमाणं, जाणसु परिणामगं साहुं ॥। १९४१॥ अतिपरिणामकाः For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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