Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 19
________________ उत्तराध्ययन/१८ प्रेरणा न दी होती तो सम्भव है कि अभी इस कार्य में अधिक विलम्ब होता। आगम का सम्पादन, लेखन करना बहुत ही परिश्रमसाध्य कार्य है। वीतराग की वाणी के गम्भीर रहस्य को समझ कर उसे भाषा में उतारना और भी टेढ़ी खीर है। पर मेरा परम सौभाग्य है कि आगम साहित्य के गम्भीर ज्ञाता, परमश्रद्धेय, सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म. सा. तथा साहित्यमनीषी पूज्य गुरुदेव श्री देवेन्द्रमुनि जी शास्त्री का सतत मार्गदर्शन मेरे पथ को आलोकित करता रहा है। उन्हीं की असीम कृपा से इस महान् कार्य को करने में सक्षम हो सका हूँ। गुरुदेवश्री ने इस भगीरथ कार्य को सम्पन्न करने में जो श्रम किया वह शब्दातीत है। मेरे अनुवाद और सम्पादन को देखकर स्नेहमूर्ति श्रीचन्द सुराणा 'सरस' ने मुक्तकंठ से सराहना की, जिससे मुझे कार्य करने में अधिक उत्साह उत्पन्न हुआ और मैं गुरुजनों के आशीर्वाद से यह कार्य शीघ्र सम्पन्न कर सका। सम्पादन करते समय मैंने अनेक प्रतियों का उपयोग किया है। नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और वृत्तियों का भी यथास्थान उपयोग किया है। वृत्ति-साहित्य में अनेक कथाएँ आई हैं, जो विषय को परिपुष्ट करती हैं। चाहते हुए भी, ग्रन्थ की काया अधिक बड़ी न हो जाय इसलिये, मैंने इसमें वे कथाएँ नहीं दी हैं। ज्ञात व अज्ञात रूप में जिस किसी का भी सहयोग मिला है- उसके प्रति आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ। यहाँ पर मैं परमादरणीया, पूण्य मातेश्वरी महासती श्री प्रकाशवतीजी को भी विस्मृत नहीं कर सकता, जिनके कारण ही मैं संयम-साधना के पथ पर अग्रसर हुआ हैं तथा परम श्रद्धेया सदगरुणीजी जी. प्रजामति पुष्पवती जी को भी भूल नहीं सकता, जिनके पथ-प्रदर्शन से मेरे जीवन को विचारों के आलोक से आपूरित किया तथा ज्येष्ठ भ्राता श्री रमेशमुनि जी का हार्दिक स्नेह भी मेरे लिए सम्बल रूप रहा है। दिनेशमुनिजी व नरेशमुनिजी म. का भी मेरे पर महान् उपकार रहा है। महासती नानकुंवरजी म., महासती हेमवतीजी का स्नेहपूर्ण आशीर्वाद भी मेरे लिए मार्गदर्शक रहा है। ज्ञात व अज्ञात रूप में जिन किन्हीं का भी सहयोग मुझे मिला है, मैं उन सभी का हार्दिक आभारी हूँ। आशा है कि मेरा यह प्रयास पाठकों को पसन्द आयेगा। मूर्धन्य मनीषियों से मेरा साग्रह निवेदन है कि वे अपने अनमोल सुझाव हितबुद्धि से मुझे प्रदान करें, ताकि अगले संस्करण को और अधिक परिष्कृत किया जा सके। - राजेन्द्रमुनि शास्त्री जैन स्थानक चांदावतों का नोखा दि. २ फरवरी, १९८३ (प्रथम संस्करण से)

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