Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
है, वह सदैव चिरस्मरणीय रहेगा। इसके अलावा कुछ ही माह पूर्व मद्रास विश्वविद्यालय में जैन सिद्धांतों पर विशेष शोध हेतु स्वतन्त्र विभाग की स्थापना कराने में भी आपने अपना सक्रिय योगदान दिया ।
इस तरह आपने व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान - ज्योति जलाकर, शिक्षा के अभाव को दूर करने की अपनी भावना को साकार / मूर्त रूप दिया।
योगदान : चिकित्सा के क्षेत्र में
चिकित्साक्षेत्र में भी आप अपनी अमूल्य सेवाएँ अर्पित करने में कभी पीछे नहीं रहे। सन् १९२७ में आपने नोखा एवं कुचेरा में निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की । सन् १९४० में कुचेरा औषधालय को विशाल धनराशि के साथ राजस्थान सरकार को समर्पित कर दिया, जो वर्तमान में 'सेठ मोहनलाल चोरड़िया सरकारी औषधालय' के नाम से जनसेवा का उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। इस सेवाकार्य के उपलक्ष में राजस्थान सरकार नें आपकों 'पालकी शिरोमोर' की पदवी से अलंकृत किया ।
अल्प व्यय में चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मद्रास में श्री जैन मेडीकल रिलीफ सोसायटी की स्थापना में सक्रिय योगदान दिया। इसके तत्त्वाधान में सम्प्रति १८ औषधालय, प्रसूतिगृह आदि सुचारु रूप से कार्य कर रहे हैं ।
कुछ समय पूर्व ही आपने अपनी धर्मपत्नी के नाम से प्रसूतिगृह एवं शिशुकल्याणगृह की स्थापना हेतु पांच लाख रुपये की राशि दान की। समय-समय पर आपने नेत्रचिकित्सा - शिवरों आदि आयोजित करवाकर सराहनीय कार्य किया ।
इस तरह चिकित्साक्षेत्र में और भी अनेक कार्य करके आपने जनता की दुःखमुक्ति हेतु यथाशक्ति प्रयास
किया ।
योगदान : जीवदया के क्षेत्र में
आपके हृदय मानवजगत् के साथ ही पशुजगत् के प्रति भी करुणा का अजस्र स्रोत बहता रहता था । पशुओं के दुःख को भी आपने सदैव अपना दुःख समझा । अतः उनके दुःख और उन पर होने वाले अत्याचार निवारण में सहयोग देने हेतु 'भगवान महावीर अहिंसा प्रचार संघ' की स्थापना कर एक व्यवस्थित कार्य शुरू किया। इस संस्था के माध्यम से जीवों को अभयदान देने एवं अहिंसा - प्रचार का कार्य बड़े सुन्दर ढंग से चल रहा है। आपकी उल्लिखित सेवाओं को देखते हुए यदि आपको 'प्राणीमात्र के हितचिन्तक' कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
योगदान : धार्मिक क्षेत्र में
आपके रोम - रोम में धार्मिकता व्याप्त थी । आप प्रत्येक धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधि में अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करते थे। जीवन के अन्तिम समय तक आपने जैन श्रीसंघ मद्रास के संघपति के रूप में अविस्मरणीय सेवाएँ दीं। कई वर्षों तक अ. भा. श्वे. स्था. जैन कॉन्फ्रेस के अध्यक्ष पद पर रहकर उसके कार्यभार को बड़ी दक्षता के साथ संभाला।
[९]