Book Title: Agam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमो नमो निम्मल सणस्स पंचम गणपर श्रीसप स्वामिने नमः १५ पनवणा सुत्तं (१) 19||-1 1|२||-2 ||५||-3 ॥६||-4 च उ त्यं उ वंग पढम पत्रवणापयं, ववगयजर-मरणभए सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेणं वंदामि जिणवरिंदं तेलोक्कगुरुंमहावीरं (२) सुयरयणनिहाणं जिणवरेण भवियजणनिव्वुइकरेण उवदंसिया भयवा पत्रदणा सव्वभावाणं वायगवरवंसाओ तेवीसइमेणं धीरपुरिसेण दुद्धरधरेणं मुणिणा पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीण ॥३||-प्र.11 सुपसागरा विएऊणजेण सुयरयणमुत्तमं दिलं सीसगणस्स भगवओ तस्स नमो अनसामस्स ||४||-प्र.21 अज्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिठिवाय-नीसंदं जह वणियं भगवया अहमवि तह दण्णइस्सामि पन्नवणा ठाणाइंबहुवत्तव्यं ठिई विसेसा य वककंती उस्सासो सण्णा जोणीय चरिमाई (७) भासा सरीर परिणाम कसाए इंदिए पओगे य लेसा कायठिईया सप्मत्तेअंतकिरिया य ओगाहणसंठाणे किरिया कम्मे त्ति यावरे कम्मरस बंधए कम्मवेदए वेदस्स बंधए वेययेयए ॥८16 आहारे उवओगे पासणया सणि संजमे चेव ओही पवियारण वेयणाय तत्तो समुग्धाए |९||-7 (१०) से किंतं पत्रवणा पन्नवणा दुविहा, तंजहा-जीवपन्नवणा य अजीवपन्नवणाय।१।-1 (११) से किं तं अजीवपन्नवणा अजीवपनवणा दुविहापनत्तातं जहा-रूविअजीवपन्नवणा यअरुविअजीवपन्नवणाया12 (१२) से कि तं अरूविअजीवपत्रवणा अरूविअजीवपत्रवणा दसविहा पन्नत्ता तं जहाधम्मत्यिकाए धम्मत्यिकायस्सदेसे धमस्थिकायस्सपदेसा अधम्मत्यिकाए अधम्मत्यिकायस्सदेसे अधम्मत्यिकायस्सपदेसाआगासस्थिकाए आगासत्यिकायस्सदेसे आगासत्यिकायस्सपदेसा अद्धासमए से तं अस्विअजीयपनयणा ।३।७ (१३) से किं तं रूविअजीयपन्नायणा, रूविअजीवपत्रवणा चउब्विहा पनत्ता तं जहा खंधा खंघदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला ते समासतो पंचविहा पत्रत्ता तं जहा-वग्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया, जे वण्णपरिणता ते पंचविहा पत्रता तं ||७||-5 For Private And Personal Use Only

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