Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 13
________________ विपाक सूत्र समज्जिणित्ता, कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवम इस रइएस इयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववज्जिहिइ । तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसियाए तिण्णि सागरोवम ट्ठिइएस णेरइएस णेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ अणंतरं उवट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहि । तत्थ वि कालं किच्चा तच्चा पुढवीए सत्त सागरोवम इिएस णेरइएस णेरइयत्ताए उववज्जि - हिति । से णं तओ सीहेसु । तयाणंतरं चउत्थीए । उरगो, पंचमीए । इत्थीओ, छट्ठीए । मणुओ, अहे सत्तम । तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता से जाई इमाइं जलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं मच्छकच्छभ-गाह-मगर-सुंसुमाराईणं अड्ढतेरस जाइ - कुलकोडिजोणिपमुह सयसहस्साइं, तत्थ णं एगमेगंसि जोणिविहाणंसि अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्याइत्ता, तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता चउप्पएस एवं उरपरिसप्पे, भुयपरिसप्पेसु, खहयरेसु, चउरिंदिएसु, तेइंदिएसु, बेइंदिएसु, वणप्फइए कडुयरुक्खेसु, कडुयदुद्धिएसु, वाउ-तेउ आउ - पुढवीसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्व भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ । से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्ठपुरे णयरे गोणत्ताए पच्चायाहि । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे अण्णया कयाइ पढमपाउसंसि गंगाए महाणईए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइट्ठपुरे णयरे सेट्ठिकुलंसि पुमत्ता पच्चायाहिस्सइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ। से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ, इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाण भंड मत्तणिक्खेवणासमिए, मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते, गुत्ते, गुत्तिंदिए, गुत्त बंभारी । से णं तत्थ बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाठणित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति - अड्ढाई जाव अपरिभूयाइं, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिइ, एवं जहा दढपइण्णे जाव सिज्झिहि । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि । ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ 8

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