Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 19
________________ विपाक सूत्र कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणं, पासइ, पासित्ता, आसुरत्ते रुट्ठे, कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियभिउडिं णिडाले साह उज्झियगं दारगं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गेण्हावित्ता अट्ठि- मुट्ठि-जाणु-कोप्पर-पहार- संभग्गमहियगत्तं करेइ, करेत्ता अवओडयबंधणं करेइ, करेत्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ । एवं खलु गोयमा ! उज्झियए दारए पुरापोराणाणं कम्माणं जाव पच्चणुभवमाणे विहर। २४ उज्झियए णं भंते ! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ? २५ गोयमा ! उज्झियए दारगे पणवीसं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलीभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पा पुढवी णेरइयत्ताए उववज्जिहिइ | से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरि पायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तत्थ उम्मुकबाल भावे तिरियभोगे मुच्छिए, गिद्धे, गढिए, अज्झोववण्णे, जाए जाए वाणरपेल्लए वहेइ । तं कम्मे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे णयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चाया हिइ । तए णं तं दारयं अम्मापियरो जायमेत्तकं वद्धेहिंति, णपुंसगकम्मं सिक्खा- वेहिंति । त णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं णामधेज्जं करेहिंति, तं जहा- होउ णं अम्हं इमे दारए पियसेणे णामं णपुंसए । तए णं से पियसेणे णपुंस उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते विण्णयपरिणयमेत्ते रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठे उक्किट्ठसरीरे भविस्सइ । तए णं से पियसेणे णपुंसए इंदपुरे णयरे वहवे राईसर जाव सत्थवाह भइओ बहूहि य विज्जापयोगेहि य मंतपओगेहिय चुण्णपओगेहि य हियउड्डावणाहि य णिण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभियोगिएहि य आभियोगित्ता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ । तए णं से पियसेणे णपुंसए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता एकवीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववज्जिहि । तत्तो सरीसवेसु, एवं संसारो तहेव जहा पढमे अज्झयणे जाव पुढवीसु । से णं तओ अणंतरं उव्वट्टिता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भार वासे चंपाए णयरीए महिसत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ अण्णया कयाइ गोट्ठिल्लएहिं जीवीयाओ ववरोविए समाणे तत्थेव चंपाए णयरीए सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिइ, अणगारे भविस्सइ, सोहम्मे कप्पे, जहा पढमे जाव अंतं करेहिइ । णिक्खेवो जहा पढमस्स । ॥ बीअं अज्झयणं समत्तं ॥ 14

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