Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ आपे छे. तेओ कहे छे के जेम कोई पुरुष मशकने फुलावीने तेनुं मोढुं बंध करे, पछी मशकने वचले भागे गांठ मारी दे, गांठ मार्या पछी मशकनुं मोढुं खुल्लुं करी तेनो पवन काढी तेमां पाणी भरी दे, पछी गांठ छोडी नाख्ने तो जेम ते पवनने आधारे उपरनुं पाणी नीचे न आवतां उपर ज रहे छे तेम आ पृथ्वी पवनने आधारे रहेला समुद्र उपर टकी रही छे. ( भा० १ पा० १७ ) एक स्थळे पोताना शिष्य रोहक अणगारने समजावतां भगवान कहे छे के जेम कूकडी अने इंडुं ए बे बच्चे कयुं कार्य अने कयुं कारण एवो क्रमवाळो विभाग थई शकतो नथी पण बन्नेने शाश्वत मानवा पडे छे, तेम लोक, अलोक, जीव, अजीव वगेरे भावोने पण शाश्वत मानवाना छे. ए बे वच्चे कशो कार्यकारणनो क्रम नथी. ( भा० १ पा० १६७ ) एकस्थळे गर्भस्थ जीवनी स्थितिनी चर्चा करतां गर्भमा रहेलो जीव शुं खाय छे, तेने शौच, मूत्र, श्लेष वगेरे होय छे के नही, गर्भस्थ जीवे करेला आहारना कया कया परिणामो थाय छे, ते जीव मुखथी खाई शके छे के नहि, ते कई रीते आहार ले छें, ते जीवमां केटलो मातानो अने केटलो पितानो अंश होय छे, तेनुं निस्सरण माथाथी थाय छे के पगथी वगेरे हकीकतो जेम महर्षि चरक समजावे छे, तेज रीते, पण संक्षेपमां समजाववामां आवी छे. ( भा० १ पा० १८१ ) एक बींजी जग्याए पाणीना गर्भ विषे विचार चालेलो छे. तेमां कहेलुं छे के पाणीनो बंधाएलो गर्भ वधारेमां वधारे छ महिना सुघी टकी शके छे, पछी तो ते गळे ज. ( भा० १ पा० २७३ ) आ विषे थोडी वधारे चर्चा ठाणांग सूत्रमां पण आवे छे. एनी सविस्तर चर्चा जोवी होय तो वाराहीसंहितामां उदकगर्भने लगतुं आखुं प्रकरण जोई लेवं जोईए. गर्भ क्यारे बंधाय छे, कया महिनामां एनी केवी स्थिति होय छे, क्यारे गळे छे, ते बधुं एमां सविस्तर वर्णवायेलुं छे. वाराहीसंहिता ए वैदिक परंपरानो विश्वकोष जेवो एक मोटो ग्रंथ छे ते न भुलाय . भाषा-शब्दना खरूपनी चर्चा करतां शब्दोनी उत्पत्ति, शब्दोनो आकार, बोलायेल शब्द ज्यां पर्यवसान पामे छे ते अने शब्दना परमाणुओ वगेरे विषे विस्तारथी जणावेलुं छे. ( भा० १ पा० २९१ ) पनवणासूत्रमां भाषाना खरूपने लगतुं भाषापद नामनुं एक ११ मुं प्रकरण ज छे. तो विशेषार्थीए ए बधुं त्यांथी जोई लेबुं. समुद्रमां भरती अने ओट थाय छे ते सौ कोईनी जाणमां छे. ते भरतीओट थवानां कारणोनी चर्चा करतां समुद्रनी चारे दिशामां चार मोटा पातालकलशो होवानुं अने ते उपरांत बीजा अनेक क्षुद्र कलशो होवानुं जणाव्युं छे. ते पातालकलशोमां नीचेना भागमा बायु रहे छे, वचला भागमां वायु अने पाणी साथे रहे छे अने उपला भागमां एकलं पाणी रहे छे. ज्यारे ए वायु कंपे छे, क्षुब्ध थाय छे, ब्यारे समुद्रनुं पाणी ऊछळे छे अने ज्यारे एम नथी यतुं व्यारे समुद्रनुं पाणी ऊछळतुं नथी. आ प्रमाणे भरतीओटना प्रश्नने लग समाधान मूकेलुं छे. (भा० २ पा० ८२ ) ए समाधानमांथी आपणे एटलं तो जरूर तारवी शकीए छीए के कदाच वायुना कारणी समुद्रमां भरती ओट थतां होय. आ उपरांत सूर्यने अने ऋतुने लगती पण केटलीक चर्चा आ सूत्रमां आवेली छे. ए चर्चामा जणावेली हकीकतोनो खुलासो त्यारे ज मेळवी शकीए ज्यारे आपणे खगोळ अने ऋतुना विज्ञानशास्त्रनुं गंभीर रीते परिशीलन कर्यु होय. काने जे शब्दो आवे छे ते शब्दोनुं ग्रहण कर्णेन्द्रिय अने शब्दना स्पर्शथी थाय छे के एमने एम थाय छे ! तेना उत्तरमां कर्णेन्द्रियने शब्दनो स्पर्श थया पछी ज शब्दनुं ग्रहण थाय छे एम स्वीकारवामां आवेल छे. ( भा० २ पा० १७१ ) आ विषे वधारे विस्तारवाळु वर्णन पनवणासूत्रना पंदरमा इन्द्रियमदमां छे. तेमां इन्द्रियोना प्रकारो, आकारो, दरेक इन्द्रियनी जाडाई, पोळाई, कद, इन्द्रियोद्वारा थती पदार्थग्रहणनी रीत, इन्द्रिय केटले वधारे दूर के नजीकथी पदार्थने ग्रहण करी शके छेते अंतरनुं माप ए. बधुं वीगतथी चर्चेल छे. अंधारुं अने अजवाळु केम थाय छे तेनो पण खुलासो भगवाने पोतानी रीते जणाव्यो छे. ( भा० २ पा० २४६ ) वनस्पतिविषे विचार करतां एक जग्याए ते सौथी ओछो आहार क्यारे ले छे अने सौथी वधारे आहार क्यारे ले छे ! ए प्रश्नना उत्तरमां भगवाने जणावेलं छे के प्रावृट्ऋतुमां एटले श्रावण अने भादरवा महिनामां, अने वर्षाऋतुमां एटले आसो अने कार तक मां वनस्पति सौथी वधारेमा वधारे आहार ले छे. अने पछी शरद्, हेमंत अने वसंतऋतुमा ओछो ओछो आहार ले छे. पण सौथी ओछो आहार प्रीष्मऋतुमां ले छे. आ उत्तर सांभळी फरीथी गौतमे पूछयुं के हे भगवान! जो ग्रीष्मऋतुमां वनस्पति सौथी ओछामा ओछो आहार • लेती होय तो ते वखते पांदडावाळी, पुष्पवाळी, फळवाळी, लीलीछम अने अत्यंत शोभावाळी केम देखाय छे ? उत्तरमां भगवाने क एकठा थाय छे, वधारे वृद्धि पामे छे, ते. अने आंखने ठारे एवी शोभावाळी थाय छे. छे के केटलाक उष्णयोनिक जीवो तथा पुद्गलो वनस्पतिकायरूपें तेमां उत्पन्न थाय छे, कारणथी हे गौतम ! ग्रीष्ममां अल्पाहार करती वनस्पति पांदडावाळी, पुष्पवाळी, फळवाळी, १ जूओ प्रस्तुत ग्रन्थ भा० १ पृ० २७३ तथा टिप्पण १ पृ० २७५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 442