Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): K R Chandra, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
View full book text
________________
विद्वद्वर्य मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित 'कल्पसूत्र' में
से उद्धृत अंश* १. भाषा भने भौतिs 4ust (१४ ३-४) ।
પતિઓમાં ભાષાદષ્ટિએ અને પાઠોની દષ્ટિએ ઘણું સમવિષમપણું छे..... शुद्ध पाहोनी विशे तो पूछवानुं ४ | डोय?
કોઈ પણ જૈન આગમની મૌલિક પ્રાચીન કે અર્વાચીન સાથંત સાંગોપાંગ અખંડ દ્ધ પ્રતિ એક પણ આપણા સમક્ષ નથી. તેમ જ ચૂર્ણિકાર-ટીકાકાર આદિએ કેવા પાઠો કે આદર્શોને અપનાવ્યા હતા એ દર્શાવનાર આદર્શ પ્રતિઓ
१. भाषा और मौलिक पाठ
भाषा और पाठों की दृष्टि से प्रतिओं में बड़ी ही समविषमता है .....' अशुद्ध पाठों के विषय में तो कहना ही क्या ?
किसी भी जैन आगम की एक भी मौलिक प्राचीन या अर्वाचीन साद्यंत सांगोपांग अखंड शुद्ध प्रति अपने समक्ष नहीं है। तथा च चूर्णिकार-टीकाकार आदि ने कैसे पाठ और आदर्शों को अपनाया था ऐसा दर्शानेवाली आदर्श प्रतियाँ
1. Language and Original Text
From the points of view of language and text there is great disparity in the manuscripts, what to say about corrupt readings.
There is before us not a single original old or young manuscript which is wholly, entirely and perfectly correct. And that kind of sources (having original readings) are also not before us which can guide us to rely on the text and ★ कल्पसूत्र (गुजराती भाषांतर साथे), साराभाई मणिलाल नवाब, अहमदाबाद, ई.स.
१९५२ । गुजराती भाषा में उद्धृत मूल अंश है । उसका अनुवाद हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में दिया गया है - संपादक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org