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श्री पद्म बलदेव चरित्र. (११) तथा लक्ष्मणे ते बन्ने राजानने विदाय कस्या, तेथी तेन हर्ष पामता उता पोताने स्थानके गया. प्रताप अने कीर्तिने वृद्धि पमामनारा रामे पण त्यां ते रात्री रही बीजे दिवसे सीता अने लक्ष्मण सहित आगल प्रयाण करयु. अनुक्रमे तेन को महा अरण्यमां आवी पहोच्या. त्यां महा वर्षाद वरसवा लाग्यो; तेथी तेमणे एक वमवृतनी नीचे निवास कस्यो. पली रामे ते वमवृक्षने महा विस्तारवंत जोश्ने जानकी तथा लक्ष्मणने कह्यं के, “आपणे वर्षाकाल पुरो श्राय त्यां सुधी आ वमवृतनी नीचेज निवास करिशं."
हवे ते वमवृक्षनो अधिष्टायक को अश्वकर्ण नामे यह हतो ते श्रीरामना तेजने न सहन करी शकवायी पोताना गोकर्ण नामना अधिपति पासे जश्ने कदेवा लाग्यो के, “हे नाय ! म्हारा वझवृदनी नीचे कोइ असह्य तेजवंत पुरुष आवेल . तेमनी दृष्टि आगल हुं कणमात्र पण रहेवाने समर्थ नथी. वली ते वर्षाकाल त्यांज रहेवाना , माटे हे विन्नु ! तमे म्हारं तेमनाथी रक्षण करो." पठी गोकर्ण अवधिज्ञानश्री तेमने वासुदेव तथा बलदेव जाणीने अश्वकर्ण यकने कहेवा लाग्यो के, “हे अश्वकर्ण! त्हारा नाग्यने लीधेज दशरथ राजाना पुत्रो ते महा बलवंत राम लक्ष्मण हारा श्राश्रमे अतिथीरूप श्रया . निश्चे तुं एमनी सेवा नक्ति कर.” पनी अश्वकर्णे" हुँ एमनी सेवा नक्ति करूं.” एम विचारी पोतानी देवशक्तिश्री नव योजन पहोली, बार योजन लांबी, सोनाना किल्लावाली अने सोनाना, रूपाना अने मणिना महेलवाली रामनामनी प्रख्यात पुरी वसावी दीधी.
प्रनाते मांगलिक वाजींत्रोना शब्दोश्री राम लक्ष्मण जागी नव्या एटसे तो तेमणे गीत गानमां आसक्त थयेला तथा अति प्रेमवाला ते यहने दी. गे. पनी यह त्नक्तिपूर्वक राम लक्ष्मणने कह्यु. “ में आपने माटेज आ पुरी बनावी , माटे तेमां सुखेधी रहो." पठी यके निरंतर सेवा करेला सीता अने लक्ष्मण सहित राम त्यांज वर्षाकाल रह्या. यह हमेशां कल्पवृक्षनां पुष्प, दिव्यहार अने विविध प्रकारना फूलोश्री राम लक्ष्मणने नक्तिपूर्वक संतोष पमामवा लाग्यो. लक्ष्मण अने सिता सहित राम पण दुःखी, अनाथ अने दीन लोकोनो यदानथी नक्षर करता उता त्यांज रह्या.
हवे ज्यारे वर्षाकाल निवृत्त अयो त्यारे आगल प्रयाण करवाने नत्साहवं.