Book Title: Adinath Charitra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 421
________________ पांमव चरित्र. (१७) वलोकने विषे नवपल्योपमनां आयुष्यवाली देवी श्र. [चारणमुनि, कृष्णा- .. दिनूपालोने कहे ले के,] पनी पहेला देवलोकथी चवीने ते देवी आ डुपदराजानी पुत्री अने. पूर्वनवने विषे करेलां कर्मथी तेने पांच नार श्रया एमां तमे शा माटे विस्मय पामो गे?” मुनिनां आवां वचनथी आकाशने विषे "बहु सारं थयुं, बहु सारं अयु" एम शब्द अयो. कृष्णादिक पण तेननी प्रशंशा करवा लाग्या. पनी स्वयंवरमां आवेला राजा तथा स्वजनोनी समक पांसुराजानी आझायी ते पांचे पांमवो पद राजकन्याने नत्सवपूर्वक परण्या. त्यारबाद डुपद राजाए, स्वयंवरमां आवेला दशाोंने तथा कृष्णादि वीजानुपतियोने गौरवपूर्वक पोतपोताना नगर प्रत्ये विदाय कस्या. पद नरेश्वरे सत्कार करेला पांमुराजा पण पोताना पांच पुत्रो सहित बहु नत्सवोवाला दस्तिनापुर प्रत्ये पाव्या. हवे एक दिवस युधिष्ठिर उपदीना मंदिरमां बेग हता एवामां त्यां विश्वमां मरजी प्रमाणे फरनारा नारद आव्या. युधिष्टिरे तेमनुं पूजन करयु.पी. प्रसन्न श्रयेला नारदे तुरत बीजा नीमसेनादि चारे नानने त्यां वोलावी “तमारे आ पंचाली (शेपदी) ने योग्य अवसरे सेवन करवी.” एम कहीने योग्य व्यवस्था करी आपी. वली तेमणे एवो प्रतिबंध कस्यो के, “आज्ञेपदीना घरने विषे एक ना विद्यमान उतां जो बीजो ना अनुरागथी प्रवेश करशे तो तेने बार वर्षपर्यंत तीर्थयात्रा करवा जQ.” एक दिवस युधिष्ठिरोपदीना घरने विषे हता एवामां अर्जुने त्यां अजाणतां प्रवेश कस्यो. पठी युधिष्ठिरादि बंधुनए ना कह्या उतां पण सत्य प्रतिज्ञावालो अर्जुन तीर्थयात्रा माटे चाली निकल्यो. सर्व तीर्थोने विषे जिनेश्वरोनी प्रतिमाने हर्षधी नमस्कार करतो ते वैताढ्य पर्वत उपर आवी पहोच्यो. त्यां तेणे श्री आदिनाथ प्रन्नुने नमस्कार कस्या. एवामां त्यां नयश्री नासी जता एवा कोई विद्याधरने तेणे पूज्यु के, " हे खेचर ! तुं आवो शोकयुक्त केम देखाय ?” विद्याधरे कडं. “आ वैताढ्य पर्वतनी उत्तरश्रेणीनो राजा हुं मणिचूम बु. हेमांगद नामना वलवंत विद्याधरे म्हारी सर्व लक्ष्मी लइ मने राज्यथी काढी मूल्यो .” विद्याधरना आवां वचन सांजली महा धनुर्धारि अर्जुन, मणिचूम विद्याधरे प्रगट करेला वैमानमां बेसीने त्यां गयो. त्यां तेणे बलश्री हेमांगदने काढी मूकी फरी मणि

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