Book Title: Adinath Charitra
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(४७) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. ते महावनमां बहु श्रम वाथी नंघी गयेला पोताना सर्व परिवारने की जलनी शोधने माटे फरता एवा नीमसेने शीतल जलथी नरपुर एवं एक महा सरोवर दी. स्नानादि करी अने कणमात्र त्यां विश्राम करीने पनी जेटलामां ते, जल लश्ने पागे वल्यो तेटलामां तेणे पावं वली जोयु तो कोई एक मनोहर स्त्री दीठी. आ स्त्री प्रथम तो क्रूर देहवाली अने “अरे ! ननो रहे नन्नो रहे" एम वहु आग्रहथी कहती हती, परंतु ते नीमसेनने जो पाग्लथी दिव्यरूपवाली अने मधुरवाणीवाली बनी गइ. कामदेवथी बहुज याकुल व्याफुल वनी गयेली ते स्त्री, लीलाथी नीमसेननी पासे श्रावी अने जाणे कटाकवळे तेने प्रहार करती होयनी ? एम मधुरवचनथी कहेवा लागी. " रूपलक्ष्मीए करीने पंचवाण (कामदेव ) ने जीतनारा हे उत्तम पुरुष ! सांतलो. श्रा पासेना पर्वतने विपे हिमंव नामनो म्हारो नाइ रहे. हं तेनी व्हेन ढुं. अने म्हारुं नाम हिमिविका . हे दयावंत ! हुं कामदेवरूप महासमुडमां बुझि गयेली , माटे आप म्हारा नपर क्रपा करीने मने आपना पाणिग्रहणरूप वहाणने विषे नहरी जीवितदान आपो. दे विवेकी ! श्रा वनमां निवास करता एवा तमोने हुं नक्तिथी म्होटो नपकार करीश, माटे दया करीने म्हारो नार करो." आ प्रमाणे विनंती करती एवी ते स्त्री प्रत्ये नीमसेने कह्यु के, " हे चपल नेत्रवाली ! हवणां आ वनने विषे निवास करता एवा श्रमोने ए घटे नहि." आवी रीते तेन तत्वथी परस्पर विवाद कर. ता इता एवामां जयंकर अंगवाला अने विकराल नेत्रवाला हिमंव राकसे तुरत मांशावीने पोतानी व्हेनने हाथवती प्रहार कस्यो.आ वखते प्रहार करेल। त स्त्रीने जोड्ने नीमसेने हिमंबने कां के, " अरे राकस ! निर्दय एवो तुं, युद्ध करवाने तैयार श्रइ रहेला अने त्दारी सन्मुख नन्नेला मने जीत्या विना आ चालाने केम प्रहार करे ? "नीमसेननां आवां वचनश्री क्रोध पामेला न. कर रुपधारी अने पीला नेत्रवाला ते राक्षसे एक वृद्ध नपामीने नीमसे
मारवा माटे घोर गर्जना पूर्वक फंक्यं.नयंकर एवा नीमसेने परा जाण बन दायनी ? एवा एक म्होटा वृदाने नपामीने सिंहनाद करता उता त दामदत्य तरफ फंकयु, न्यारवाद ते तेना तरफ यु० करवा दोमयो. परस्पर पर. बीजाना नंघनश्री अने पाद प्रदायी म्होटा पर्वतोने बहु कंपायमान

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