Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand

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Page 659
________________ श्रीत्रात्मचिंतामणी. ६४७ वे ॥उक्तंच॥ सदितीभणीएणजम्हा ॥ सव्वगणुपव्व त्तएबुद्धी॥ तोसव्वसंत्तमंतं॥ नबीतदंतरंकिचि॥१॥ इति संग्रहनयकह्यो२ हवेव्यवहारनयकहियेछिये जेपुर्वेसंग हनयेजेवस्तुग्रहणकरी तेनेनेदंतरकरीनेवेंहेंचवं तेनेव्य वहारनयकहिये जेमद्रव्यकह्योतेसामान्यकह्यो तेमध्येवें हैंचणकरिये त्यारेद्रव्यनाबेभेदथाय एकरुपीबीजोत्र रुपी२ अरुपीनावभेद एकचेतनबीजोत्रचेतन२ इत्या दिकजेभेदहेंचवा तेसर्वेव्यवहारनयनोपक्षजाणवो अथ वाव्यवहारकेहेतां प्रवर्तनतेनेव्यवहारनयकहियेडिये ते नाबेभेदछे शुद्धव्यवहार१अशुद्धव्यवहार२ तेशुद्धव्यव हारनाबेनेद वस्तुगतव्यवहारकेहेतां जेसर्वव्यनोस्व रुपरुपशुद्धप्रवर्तीहोय जेमधर्मास्तीकायनीचलणसहाय ता अधर्मास्तीकायनीस्थीरसहायता जीवनीज्ञायकता इत्यादिकवस्तुगतव्यवहारले तेनात्रणभेदछे द्रव्यव्यव हारगुणव्यवहार२ स्वनावव्यवहार३ बीजोसाधनव्य वहारनाबेनेद उत्सर्गसाधन अपवादसाधन २ जेउत्स गसाधनते द्रव्यनउत्सर्गनीपजाववामाटे रत्नत्रीयनी शुद्धताकरवी तेगुणस्थानेश्रेणीवारोहणरुपथावं हवेजेत्र शुद्धव्यवहारनाबेनेदजे क्षेत्रश्रवस्थाने अनेदरवाजेगु ||ज्ञानादिकनेदकेहेवा असदभुतव्यवहारकेहेतां अमुको क्रोधी मानी विषइइत्यादिक अथवादेवतामनुषइत्यादी -

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