Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand

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Page 712
________________ श्रीचिंदानंदवत्रीशी. - -- निजधणीकेपासेरहीके नरसकहाकरनाबातां ॥ मनउ लासप्रगट्योजेअनुनव सोतोनहिरहेछाता ॥ चेतन०३ चिदानंदकीमोजमचीजब नरकाकुंनकरेअाशा ॥ मुनिहू कमकहेनिजघर आपहिचिदानंदकरतुहेवासा ॥४॥ पद९ संपूर्ण॥ ॥पद १०९॥रागप्रनाति ॥ चेतनक्या तूंपरमेंपेसे अल्पकालजाणतहेश्रापको ॥रसुखकंणले शे॥चे०१॥ जोचतेतोकरलेसजाइ प्राश्चितत्रालोयण पेली ॥ पछीसझायध्यानतेकरिये काउसगरसेसेहेली ॥ चे०२॥ जोचेतेतोएणीविधकरले नरसेनहिहेतजका ज॥ मूनिहूकमकहेतेजनपामत सेहेजेशिवसुखराजरे ॥ चे०३॥पद१०संपूर्ण॥पद ११॥दूहो॥ एहीगुरुएहीचेला एहीदेवनकादेव ॥ रकाजगेमीकरी कीजेउनकीसेव॥१ ॥ रागाशावरी ॥ अबधुक्यातुंअनुभवपुछे निजचिदा नंदनहिबके ॥ १०॥ चिदानंदकीबातनजाणत नरकीक रतहेत्राशा ॥ रतेरेकुंक्यावतलावं एहीबडाहेपासा॥ अ० १ ॥ निजघटमेंचिदानंददीसे सर्वगुणेतेनरीयो ॥ भेदज्ञानकीकरेविविक्षा सेहेजेनवजलतरीयो । अ०२॥ क्षयउपसमवडानहिजेहकं पणजोएहनेनजशे॥ मूनिहू कमकहेतेहनेरे सेहेजेनवजलतरशे॥१०॥पद११संपूर्ण ॥पद १२ मुंवादलसेसुरजकुंढंकत॥रागहरेइहां सबहिश्राहारकुंध्यावे सोनवपारनपावे ॥॥सबहिश्रा

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