Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand

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Page 720
________________ ७०८ पद. कखाईसंदरजाणो गेरीगंनिरधार ॥ सेनपरायंत्रोलंगे नहि एसोगुणउद्दार॥३॥ शानिरनेपदएमतेपामि रम तोसमतासंग ॥ मुनिहूकमकहेचीदानंदमय दिनदिन धिकसोरंग॥४॥ पदलं संपूर्ण ॥ पद २॥ रागसोरठ॥ समनावमंदिरमांबेठो स्वभावमंडपसार ॥अनुनवमित्र तिहांमल्योछे सुधानंदविचार स०१॥ अशुद्धप्रणतिदु रनिवारी नहिसंकलेष्टलगार ॥ अध्यविसायशुद्धदिसे ए सेंनतणोपरिवार स०२॥ रीपुसेनतिहांनविपैसे एअनु भवनोपसाय ॥ मुनिहूकमसमताशुरमतां टालिपरउपा य स०॥पदरजूं संपूर्ण पद॥ रागकानडो॥ समता संगेरमणकरंता नाखीकुमतातोडी ॥ सुमतिसाथेसगा ईकीधी मोहरायेमदमोडि ॥ स. १॥ ज्ञानानंदामं तकीनो अनुभवसेनापतिसार ॥ दरशणादिकसरदारते मोटा फोजतणोनहिपारस०२॥हंदूररेह्यामोहथरथरकं पे रागद्वेषपरिवार ॥ अहियांजोरचालेनहिवाको करे नेकउपचार ॥स०३॥ श्रामंतसेनापतिएकामिजलस स्वा मिनुंराजसमालुं॥ हुंपणदोयनेवशथईवेठो ध्यानवामी मांमालुं ॥स०१॥ अबनयनहिमुजकिंचितमात्र सुधानंद रुपपायो ॥ मुनिहकमसुमताघेरायो जोतनगारोबजा यो ।स०५॥ पदइजु संपूर्ण॥ =

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