Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand
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श्रीचिंदानंदबत्रीशी.
सूणाये ॥स०१॥ सोयपणततकालसमजत उनकुंदूरनि वार ॥ उनपरिवारसबकुंघाये अबत्रावणकितईयार ॥ स०२॥इसबिदवातकहितबहरखित रोमरोमउलासाये। मुनिहूकमकहेतेदिपवधाई बोहोतमोजएधकाये ॥ स० ३॥पद२४ संपूर्ण ॥ पद २५९ रागनायका॥ अबभमर चेतनकुंरेधायो एत्रांकणि॥ अपुरवमोगरहस्तधरतहे ल इगंठीकुधाउं अपुरववीरजकरतउदेरी थतिमूर्तफेरघाउं ॥त्र. १॥ सप्तप्रक्रतितिहांउपसमाई त्रतियकरणतवजा य॥ असंखकष्टिकरितिहांत्रायो निजअंशस्वरुपदेखाये ॥०२॥तवसमकितप्रगट्यो उपसमथतिमुरतसोहाय।। मुनिहकमकहेनिजघरायो सुंदरिमोतिमेवधाय॥१०॥ ॥पद २५ मुं संपूर्ण
॥पद २६ मुं रागरेखतो ॥ सुंदरिकहेसुणपियाएसि क्याकरी हमकुंछोडदुररहेखबरनलहि ॥ श्रांकणि ॥पि याकहेसुणप्रीय खबरनपडी॥ नित्यनित्यनहिजाणि तिनसेंएठरी ॥सु०१॥ तुमसखीयेत्रायकह्यो तबहिस बलहि ॥ आस्तिनास्तिजाणिमोये स्वपरसहि॥सु०२॥ एमस्वरुपजाएयोजब उनकुंदुरकरि ॥ मुनिहूकमकहेना रि आयोघरवरी ॥सु०३॥पद २६९ संपुर्ण ॥पद२७मु रागनेरवि ॥ श्रांगणेकलपफलोरी जबमुखदेखोपीउके रो॥ दुगधादुरेगयोरी चेतनसुमतादोउखेले ॥बस्तुस्व
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