Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand

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Page 668
________________ श्रीअात्मचिंतामणी. धद्रव्यं सनमात्रमभीमनमान्य परसंग्रह इति।समस्तवि शेषधर्मपणानेनजतो एटलेविशेषपणानेणग्रहेता शु द्वद्रव्य सत्तामात्रप्रतेमाने तेपरसंग्रहकहिये जथाद्रव्यए परसंगृह विश्वएकसत्यपणामाटेएमक तापणानोएक पणानोंज्ञानथायछेएटलेसर्वपदार्थनोएकएनेग्रहण अने जेसत्तानोअधेतश्रीकरेद्रव्यंतरभेदमानेसकलविशेषनेना केहतांजेगृहणकरे तेपरसंग्रहानाश्यकहिये एटलेअध्वी त्ववादीदर्शनजेवेदांतीतथाशंखदर्शन एवंने संग्रहानाश्य ने जेमाटेदीसतानेदधर्म तथाद्रव्यंतरनमाने तेमाटेसंग हानाश्यकहिये जिनतोविशेषसहीतसामान्यनगृहेतेमाटे संग्रहनयकहिये हवेअपरसंग्रहनस्वरुपकहियेबिये द्रव्य त्वादीन अंतरसामान्यनीमीत्वातवाननेदनेदेसुगजनीम लीकाम चलमवमानप्रसंगृह एटलेद्रव्यजेजिवअजि वादिकजेत्रावतरसामान्यनेमानतो अनजिवनविषेपरती जिवनोनेदव्य अनव्यसमकीतिमिथ्यात्वी नरनरकादि जेनेदतेनेगजमलीकाकेतां मस्ताइयेनगवेख्योतेअप्रसं गृहकहिये अनेद्रव्यनेसामान्यपणुंमाने पणस्वद्रव्यनेत्र णमीकतादिकधर्मनमाने तेअपरसंगहाभायकहिये एट लेएसंगृहनयनोस्वरुपकह्यो. २ हवेव्यवहारनयनुस्वरुपकहियेछिये जेसंग्रहनयग्रह्या सत्वादिकधर्मपदार्थ तेनेजेगुणभेदेवहेंचे भिन्नभिन्नगवेखे

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