Book Title: Acharya Shree Tulsi
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ (घ) एक अपराजेय वृत्ति उनमे पाई जो परिस्थितिकी ओरसे अपने मे शैथिल्य लेनेको तैयार नहीं है बल्कि अपने आस्था-संकल्प बल पर उन्हे बदल डालनेको तत्पर है। धर्मके परिग्रह-हीन आकिंचन्यके साथ इस सपराक्रम सिंह-वृत्तिका योग अधिक नहीं मिलता। साधुता निवृत्त और निक्रिय हो जाती है। वही जव प्रवृत्त और सक्रिय हो तो निश्चय मनमे आशा उत्पन्न होती है। __ यह नहीं कि असहमतिको स्थान नहीं है । वह तो है, लेकिन वह दूसरी बात है। मुख्य यह है कि आचार्य श्री तुलसीके व्यक्तित्वमे मुझे विघटन कम प्रतीत होता है । आचार, उच्चार और विचारमे बहुत कुछ एकसूत्रता है। इसीसे व्यक्तित्वमे वेग और प्रभाव है। वह आचार्य-पद पर है। एक समुदाय और समाज उनके पीछे है। कोई सात सौ साधु-साध्वी उनके आदेश पर है। यह एक ही साथ उनकी शक्ति और मर्यादा है। यदि वह आरम्भमें अकेले होते और प्रयोगके लिए मुक्त, तो क्या होता ? इस सम्भावना पर कभी कल्पना जाकर रमना चाहती है। लगता है तव मार्ग सरल न होता, पर शायद कठिन ही हम लोगोंके लिए कीमती हो जाता। जो हो, उनके व्यक्तित्वको प्रकाशमे लानेवाली इस पुस्तकका प्रकाशन समयोपयोगी है। लेखक उनके निकटवर्ती मुनि हैं। पुस्तकमे अध्ययन और विवेचनके चिह्न है। साथ ही जैसा कि

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 215