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दोहा १. इस प्रकार का विचार कर बाहुबलजी ने सारे चिंता-फिक्र को छोड़, वस्त्राभूषण उतार पंचमुष्टि लोच किया।
२. अरिहंत, सिद्ध और साधुओं को भाव सहित नमस्कार किया। मन में वैराग्य प्राप्त कर संयम भार ग्रहण कर लिया।
३. वहीं (रणभूमि-जंगल में) कायोत्सर्ग कर धर्म ध्यान में स्थित हो मन, वचन और काया को वश कर एकाग्र चित्त हो गए।
४. सारी सेना देखती ही रह गई। सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। भरतजी भी यह समझ गए कि इसने तो संयम भार ग्रहण कर लिया है।
५. इसने जीती बाजी (लड़ाई) को छोड़कर संयम भार ग्रहण किया है। इस संसार में ऐसे आदमी विरले ही होते हैं।
६. अब बाहुबलजी पर भरतजी का प्रबल मोह जाग्रत हुआ। वे बाहुबलजी को घर में रखने के लिए क्या-क्या उपाय करते हैं, यह वृत्तांत सुनें।
ढाळ : १३
बंधुवर हर्षित होकर बोलो। १,२. मन में वैराग्य प्राप्त कर बाहुबलजी ने चारित्र ग्रहण कर लिया। भरत नरेंद्र बार-बार पैरों पड़कर इस प्रकार विनती करते हैं-आपको बाबाजी ऋषभदेवजी की शपथ है, आप पंडित, चतुर और सुजान हैं। आप खींचतान मत करो।