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चमर इंद्र असुर तिण विध भरत
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० कुमार में, राज करें अभिरांम। खेत्र मझे, राज कीजों सर्व ठांम।।
५. धरणेद नाग कुमार में, राज करे , वदीत।
तिण विध भरत खेत्र मझे, राज करों रूडी रीत।।
६. अनेक लाखां पूर्व लगें, राज कीजों वनीता मांहि।
वळे अनेक कोड पूर्व लगें, राज कीजों सुखदाय।।
७. अनेक पूर्व कोडाकोड रो, थे कीजों अखंडत राज।
आखा भरत खेतर मझे, वनीता माहि विराज।।
८. छ खंड तणी परजा पालजों, लीजों जस सोंभाग।
राज कीजों थें मोटें मंडाण थी, थारा पुन छे अतंत अथाग।।
९. इत्यादिक अनेक विरदावली, लोक बोलें , ठाम ठांम।
भरत नरिंद ने चालतां, नगरी वनीता ने ताम।।
१०. सहसांगमे माला नयणां तणी, ते देखें छे ठाम ठांम।
वळे सहसांगमे माला वदन री, ते मुख सूं करता गुणग्रांम।।
११. हिरदय माला सहसांगमे, हरष पांमें हीयों देख।
ते देख देख तिरपत हुइ नही, देखण री वंछा विशेख।।
१२. आंगुलीयां माला सहसांगमे, एक एक में तिण काल।
जीमणी अंगुलीयां सुं भरत नो, रूप दिखालें रसाल।।
१३. हजारांगमे नर नारीयां, त्यांरी अंजली माला अनेक।
ते लेतों थकों ग्रहतो थकों, ते सगलाइ बोले वशेष।। १४. सगलां सांहों जोवतों थकों, त्यांने देतो थकों सनमांन ।
गमावें नही किणनें गाफलें, इसडों छे सावधान।।