Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 448
________________ दुहा १. भरत निरंद घर छोडनें, लीधो संजम भार। त्यां पेंहिली वाणी वागरी, त्यां प्रतिबोध्या दस हजार।। २. दस हजार राजा भणी, दीधो सर्व सावध पचखाय नें, कीया संजम भार। मोटा अणगार।। ३. आचार सीखाए पडपक कीया, पछे कीयों तिहां थी विहार। ते किण विध विचर गया मोख में, ते सुणजो विसतार।। ढाळ : ७२ (लय : धिन धिन जंबू सांम नें) धिन धिन भरत जिणिंद नें। १. दस सहंस अणगार सहीत सूं, राज सभा थकी ऊठ हो मुणिंद। तिण ठाम थकी आघा नीकल्या, देइ सगलां ने पूठ हो मुणिंद। २. दस सहंस साधा सूं परवश्या थका, आया वनीता नगर मझार हो। वनीता राजध्यांनी तेहनें, मध्यो मध्य थई तिण वार हो।। ३. वनीता राजध्यांनी थी नीकल्या, चाल्या जिणपद देस मझार हो। वनीता सहीत राज रिध सर्व नी, ममता नही राखी लिगार हो। ४. एक भरत जी ने समझ्यां थकां, हुवों घणों उपगार हो। पेंहली वाणी में समझावीया, राजांन दस हजार हो। ५. जिहां जिहां भरत जी विचरीयां, तिहां तिहां हूवों घणों उपगार हो। हुइ वधोतर जिण धर्म री, जनपद देस मझार हो।।

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