Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४.
५.
७.
भिक्षु वाङ्मय - खण्ड - १०
जब रिक्षभ जिणेसर इम कहें, सुण तूं राखे चित्त ठांम हो भरत । ओ तिरदंडीयों बेटो तांहरो, मरीच तिणरो नांम हो भरत । ओ होसी तीर्थंकर चोवीसमों ॥।
६.
ए वचन सुणेनें भरत जी, मन में हरखत थाय हो सांमी । ए आप कह्यों ते सतवाय छें, म्हारें संका नही मन मांहि हो सांमी । ओ होसी तीर्थंकर चोवीसमों ॥।
८.
ते पेंहली दोय पदवी पांमसी, वासूदेव चक्रवत सोय हो । वळे असंख्याता भव कीधां पछें, छेंहलों तीर्थंकर होय हो । वीर जिणंद चोवीसमों ॥।
वंदना करनें नीकल्या, आया समोसरण बार हो भरत जी । तिहां मरीच बेठों तिणनें कह्यों, तूं होसी तीर्थंकर अवतार हो । मरीच । तूं वीर जिणंद चोवीसमों ॥।
ए वचन सुणे मरिच हरखीयों, पांमें मन में अणंद हो सांमी । रोम उकसत हुआ तेहनां, जांण्यों हूं होय सूं जिणंद हो सांमी । हूं वीर जिणंद चोवीसमों ।।
९. हिवें गणधर रिक्षभ जिणंद ना, वीनोकर सीस नमाय हो सांमी । प्रश्न पूछूं हूं आपनें, किरपा करदों वताय हो सांमी ।
हूं अरज करूं धूं वीनती ।।
१०. भरत नरिंद मोटों राजवी, छ खंड काल करेनें इहां थकी, जासी किण
रों सिरदार हो गति मझार हो
सांमी ।
सांमी ।
हूं अरज करूं छू वीनती ।।
११. रिषभ जिणेसर इम कहें, सुण तूं चित्त भरत आउखों पूरों करे, जासी सिध गति
मुनीवर ।
लगाय हो माहि हो मुनीवर । कर्म आठोइ खपायनें ॥

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