Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 441
________________ भरत चरित ४२९ ३. मैं निर्मल ध्यान धर कर उत्साह से चारित्र लेकर केवलज्ञान प्राप्त कर इस रूप में आया हूं। ४. तुम लोगों को समझाने के लिए ही मैं यहां आया हूं। आज अच्छा अवसर आ गया है । मेरी वाणी सुनें । ५. सभी राजे हाथ जोड़कर बोले- आप हमें अपूर्व ज्ञान सुनाएं, उपदेश दें। ६. अब भरतजी उन्हें समझाने के लिए उपदेश देते हैं । मुक्ति पहुंचाने के लिए या धर्म का रहस्य समझा रहे हैं । ७. मैंने तुम्हें जो राज्य दिया है उसमें सार नहीं है। उससे आत्मा के कार्य सिद्ध नहीं होंगे। इसे छोड़कर जाना होगा । ८. यह संसार असार है । इसमें अनुरक्त मत होओ। इसमें कोई सुख सार नहीं I है। ९. . जैसा संध्या का वर्ण, पींपल का पका हुआ पत्ता तथा हाथी का कान अस्थिर होता है वैसे ही मनुष्य का आयुष्य जानना चाहिए । १०. कुशाग्र पर जल-कण तथा विद्युत् के कौंधने के समान आयुष्य भी अस्थिर है। मृत्यु नजदीक है। ११. मिट्टी के कच्चे पात्र तथा स्वप्न की माया अस्थिर होती है उसी तरह तुम्हारी सारी ऋद्धि तथा आडंबर थोथे हैं । १२. इस जीव ने देव, गुरु तथा धर्म का स्वरूप नहीं समझा है इसीलिए कर्मों से खिंचा हुआ यह अंधकूप में पड़ जाता है । १३. इसलिए देव, गुरु तथा धर्म की परीक्षा करो, नवतत्त्व का निर्णय करो और संयम लेकर आठों कर्मों का नाश कर मुक्ति रूपी रमणी का वरण करो ।

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