Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ७. तीन कोड गोकल घर दूजें, एक कोड हल त्यागी।
चोसठ सहंस अंतेवर जांकें, त्यांसू विरकत थया वेंरागी रा।।
८. अडतालीस कोस में पडेज लसकर, दुसमण जाों भागी।
चवदें रत्न आगना माने, पिण न धरयों त्यांतूं रागी रा।।
९. गज मतवाला हयवर हीसत, कनडा पायक घणा रागी।
पुत्र अंतेवर रह्या झूरंता, वळे नगरी वनीता त्यागी रा।।
१०. सगलाइ रहीया मोह झूरंता, संसार दीयों , त्यागी।
कुटंब कबीलों में सेंण सेंगा त्यांसू, तुरत गयों मन भागी रा।।
११. नव निधांन सार भूत अमोलक, त्यांरा गुण छे अतंत अथागी।
वळे छ खंड केरो राज अखंडत, ते समकाले दीधों त्यागी रा।।
१२. वीस सहंस सोना रूपा रा आगर, त्यांरों पिण नही आवें थागी।
मण माणक मोती रत्नादिक थी, मूल न धरीयों रागी रा।।
१३. मेंहल बयालीस भोमीया तिणमें, जोत झिगामग लागी।
तिण उपर पिण चित्त नही दीधो, थे ऊठ खडा रह्या जागी रा।।
१४. रिध विसतार ते इंद्र तणी पर, काइ पाछ रही नही लागी।
ते धुर समान धन जांणी नें, तुरत दीधो तिणनें त्यागी रा॥
१५. जोगी जटा उपर पाछणों फेरयां, सिर सूं पडें मुख आगी।
जोगी जटा जिम रिध सगली नें, मन सू कर दीधा त्यागी रा॥

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