Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 416
________________ ४०४ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ढाळ : ६५ (लय : मेघ मुनीसरू०) कर्म बिटंबणा॥ १. ए वात प्रसिध हुइ लोक में रे हां, भरतजी मरायो , चोर। केइ धर्म तणा धेषी हुता रे हां, त्यांरो लागों हिवें जोर। २. एक अग्यांनी धेषी धर्म नों रे हां, रिषभदेवजी भाख्यों में आंम। भरत मुगत जासी इण भवे रे हां, त्यां पिण कीधी खुसाबंदी ताम।। ३. मिनख मरावता भरत जी रे हां, संके नही तिलमात। तिणनें मोख जासी कहें इण भवें रे हां, ओ प्रतिख झूठ साख्यात।। ४. काम भोग मनोगन भोगवें रे हां, वळे छ खंड रो करें राज। वळे घात करें मिनखां तणी रे हां, इसडा करे छे अकाज।। ५. इसडा अकारज करतों थकों रे हां, मुगत जासी आतम काज साझ। तो निनाणूं बेटां भणी रे हां, क्यांने छोडावता राज।। ६. राज करता मिनख मारता रे हां, ते जाों मुगत मझार। ते वात झूठी छे सर्वथा रे हां, ते हूं साच न मानूं लिगार।। ७. ते वात चलती-चलती गई रे हां, भरत नरिंद रे कान। झूठा घाल्या जाण्यां भगवान ने रे हां, कोप्या , भरत राजांन।। ८. तिणनें बोलायनें कहें भरत जी रे हां, थे आ वात कही के नांहि। जब ओं कहें म्हें कहीतो खरी रे हां, म्हारें नीकल गइ मुख मांहि।। ९. जब भरतजी कहें छे एहनें रे हां, म्हें क्यूं न जावां मोख माहि। थें रिषभ जिणंद ने झूठा कह्या रे हां, ते किस्य ग्यांन रे न्याय॥

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