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भरत चरित
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४. जिस प्रकार देवताओं का अधिपति वैश्रमण धूमधाम से कैलाश पर्वत पर आता है, उसी प्रकार भरतजी पर्वताकार शिखरबंध प्रासाद में प्रवेश करते हैं ।
५. ज्ञाति, मित्र, सगे, स्वजन, परिजन, दास-दासी आदि से मिलते हैं। उनसे सस्नेह बात करते हैं 1
६. उनके कुशलक्षेम समाचार पूछते हैं तथा स्नेहपूर्वक उनसे बात करते हैं । स्नेहपूर्ण दृष्टि से उनके सामने देखते हैं तथा यथायोग्य प्रीति करते हैं।
७. सबसे यथायोग मिलते हैं, उनके समाचार पूछते हैं । भरतजी की छवि को देख देखकर सबकी आंखों से हर्ष के आंसू छलक पड़ते हैं ।
८. इस प्रकार ज्ञातिजनों से मिलकर भरतजी स्नानगृह में गए। स्नान कर भोजनगृह में आए और तेला का पारणा किया।
९. भोजन करने के बाद सुख- समाधिपूर्वक प्रासाद में बैठते हैं। मृदंगों के सिर पर थाप पड़ती है और बत्तीस प्रकार के नाटक शुरू हो जाते हैं ।
१०. श्रेष्ठ प्रधान तरुणी स्त्रियों के साथ कामभोग भोगते हैं। बड़े ठाठ-बाट और आडंबर का यह सर्व संयोग उन्हें मिला है 1
११. ऐसे भोग - संयोग मिले हैं पर वे उन्हें अपने ज्ञान से वमन के आहार के समान जानते हैं । वैराग्य भाव प्राप्त कर इन्हें त्याग कर इसी भव में मुक्ति में जाएंगे।