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भरत चरित
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२. अधिष्ठायक देवता उनकी सुरक्षा करते हैं। इनमें पुस्तकें हैं। उन्हीं से लोकाचार की प्रवृत्ति होती है। वे निधान भरतजी के अधीन हुए।
३. नौ ही निधान सुरम्य हैं। तीनों लोकों में उनका यश प्रसिद्ध है। ऐसी अमूल्य शाश्वती भारी चीज जिसके पास होगी उसके पुण्य परिपूर्ण हैं।
४. नौ निधानों के नाम इस प्रकार हैं- १ नैसर्प, २ पंडूक, ३ पिंगल, ४ सर्वरत्न, ५ महापद्म, ६ काल, ७ महाकाल, ८ माणक्वक तथा ९ शंख।
५. नैसर्प निधान के अंतर्गत ग्राम, नगर, पाटण, द्रोणमुख, मंडप, छावनी, घर, हाट आदि की सविधि जानकारी होती हैं।
६. पंडूक निधान के अंतर्गत नारियल आदि की संख्या की गणना, धान्य-बीज आदि के तोल-माप का प्रमाण तथा बोने का विचार आता है।
७. पिंगल निधान के अंतर्गत स्त्री-पुरुष, हाथी-घोड़े आदि के आभूषणों को यथास्थान पहनना आता है।
८. चक्रवर्ती के चौदह रत्न होते हैं। उनमें सात एकेंद्रिय तथा सात पंचेंद्रिय होते हैं। उनकी उत्पत्ति की विधि सर्वरत्न के अंतर्गत है, उन्हें सम्यग् रूप से जानें।
९. महापद्म निधान के अंतर्गत वस्त्र की उत्पत्ति-निष्पत्ति तथा धोने-रंगनेछापने की विधि आती है।
१०. काल निधान के अंतर्गत काल-विज्ञान, ज्योतिर्विज्ञान, अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के शुभाशुभ की पहचान आती है।
___११. काल निधान के अंतर्गत लोकहितकारी असि, मसि, कृषि तीनों कर्मों एवं सौ शिल्प कलाओं को भी अलग-अलग रूप से जाना जाता है।
१२. महाकाल के अंतर्गत सोने, चांदी, रत्नों के आकर मणि, माणक, मोती, प्रवाल, लोह आदि की उत्पत्ति की सारो विधि आती है।