________________
भरत चरित
२८९
२. तीन दिन पूरे होने पर पूर्वोक्त कृतमाली देव की ही तरह यहां नटमाली देव भंड, भाजन, कड़ा आदि लेकर उपस्थित हुआ ।
३. भरतजी ने नटमाली देव को नतमस्तक कर उसे अपना सेवक स्थापित कर कृतमाली देव की तरह सत्कार - सम्मानपूर्वक विदा किया।
४. श्रेणि- प्रश्रेणि को बुलाकर भरतजी ने कहा- मैंने नटमाली देव पर विजय प्राप्त करली है । इस उपलक्ष महोत्सव आयोजित करो ।
५. श्रेणि- प्रश्रेणि यह सुन हर्षित हुए और धूमधाम से आठ दिन का महोत्सव कर राजा की आज्ञा को प्रत्यर्पित किया ।
६. महोत्सव संपन्न होने पर भरतजी ने सेनापति को बुलाकर कहा- गंगा नदी के उस पार जाकर सब जगह मेरी आज्ञा प्रवर्ताओ ।
७,८. चूल हेमवंत और वैताढ्य के बीच गंगा से लवण समुद्र तक ऊंची-नीची सब जगह सब राजाओं को जीतकर उनके रत्न आदि उपहार लेकर उन्हें विनत कर पूरे खंड में मेरी आज्ञा प्रवर्ताकर मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करो ।
९,१०. सेनापति यह सुन हर्षित हुआ और सिंधु की तरह ही गंगा के पार गया। पूरे खंड में आज्ञा प्रवर्ता कर रत्न आदि का उपहार लेकर उन्हें विनत कर गंगा नदी को पार कर अत्यंत उल्लास से वापिस आया ।
विजय कटक में भरतजी के पास आया। अच्छी तरह विनय कर जय११. विजय शब्दों से उन्हें वर्धापित किया ।
-
१२. रत्न आदि के जो उपहार लाया उन्हें भरतजी के सामने प्रस्तुत किया। सिंधु नदी के पूर्व खंड को साध कर आया उसी तरह यहां सारा विस्तार जानना चाहिए ।