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भरत चरित
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३. कुछ राजा हाथी-घोड़ा आदि लाकर सेनापति को सौंपते हैं। कहते हैंमहाशय! आप हमारा उपहार स्वीकार करो।
४. इस प्रकार कह-कहकर बड़े-बड़े राजाओं ने आज्ञा मानकर भरतजी को अपना स्वामी स्वीकार किया।
५. हम सेवक हैं, आप स्वामी हैं। अब आप हमारा नाम ही न लें। हम देवता की तरह आपकी शरण में हैं।
६. हम सब राजा आपके देश के नागरिक हैं । भरतजी की आज्ञा हमारे सिर पर
७. सेनापति को जय-विजय शब्दों से वर्धापित करते हुए उपहार उसके चरणों में प्रस्तुत कर प्रार्थना करते हैं।
८. सभी राजाओं ने सेनापति का अत्यधिक सत्कार सम्मान किया।
९. भरत नरेंद्र की सत्ता स्वीकार कर उनके सेवक बनकर अपने-अपने स्थान पर गए।
१०. सभी राजा झुक गए। कोई भी बाकी नहीं रहा। सबको सेवक स्थापित कर दिया।
११. सिंधु नदी के उस पार तथा लवण समुद्र के इस पार तक, सर्वत्र भरतजी की आज्ञा मनवा दी।
१२. सेनापतिरत्न ने इस खंड में आकर भरत चक्रवर्ती को नरेंद्र के रूप में प्रसिद्ध-विख्यात बना दिया।
१३. सब जगह सत्ता स्थापित कर अपने स्थान पर आया और जो उपहार मिले उन्हें लेकर लौटने की तैयारी की।