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भरत चरित
२२३ ३. अग्रिम पंक्ति को दही की तरह मथते हुए उन्होंने आधी सेना को मार दिया। आधी सेना हारकर भाग गई। आपात चिलातियों ने उन्हें जीत लिया।
४. वीर तथा प्रधान योद्धा कमजोर हो गए। ध्वजा-पताकाओं को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया तथा बलपूर्वक शिविरों को लूट लिया।
५. वे बहुत अहंमानी थे पर अब उनके लिए भूमि भारी पड़ गई। उनका जोर नहीं चला। दिशि-दिशि में भाग गए। उनसे प्रतिरोध करना असंभव हो गया।
६. सेनापति ने देखा अग्रिम पंक्ति त्रस्त होकर दिशि-दिशि में भाग रही है। इससे वह कुपित हो गया।
७. सेनापति भरतजी के हाथ से खड्ग लेकर अपनी जोड़ी के कमलामेल ताकतवर अश्वरत्न पर सवार हुआ।
८. अश्वरत्न तो मतंग था ही खड्गरत्न भी मनोहारी था। जोध-जोरावर सूरवीर सेनापति हाथ में खड्ग लेकर उस घोड़े पर सवार हो गया।
९. वह सिंहनाद की तरह गाजने लगा। घोड़ों के पदतल की प्रतिध्वनि होने लगी। हाथ में खड्ग ऐसा झलक रहा था मानो विद्युत चमक रही हो। उसे देखकर सब थर-थर कांपने लगे।
१०. आपात चिलातियों को मारने के लिए वह युद्धस्थल पर आया, उनसे संग्राम किया और खड्गरत्न से उनकी हत्या कर डाली।