________________
दोहा १. बाहुबलजी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ, यह ब्राह्मी-सुंदरी का उपकार है। ये दोनों सतियां भी बड़ी महान् एवं गुणरत्नों की भंडार हैं।
२,३. उनका रूप बड़ा मनोरम एवं अप्सरा के प्रतिरूप है। ब्राह्मी का रूप देखकर भरतजी ने मन में जब यह विचार किया- मैं इसे स्त्री-रत्न के रूप में अपने अंत:पुर में सर्वोत्तम पद पर स्थापित करूं यह बात सुनी तो ब्राह्मी ने तपस्या स्वीकार करली।
४. वह दो-दो दिनों के अंतराल से खाना खाने लगी और रूप का विनाश करने लगी। अब मैं आदि से इस प्रसंग का उद्भव बता रहा हूं। सुधीजन उसे सुनें।
ढाळ : १६
१. राजा ऋषभ के सुमंगला और सुनंदा नाम की दो रानियां थीं। सुमंगला ने ब्राह्मी और सुनंदा ने सुंदरी नाम से दो पुत्रियों को जन्म दिया।
२. दोनों ने पूर्व भव में सत् क्रिया की थी। इससे इनकी काया कोमल एवं सुनहरी थी। इनके रूप में कोई कमी नहीं थी।
३. दोनों सर्वार्थ सिद्ध विमान से च्युत होकर भरत और बाहुबल की युगल बहनों के रूप में पैदा हुईं। इसलिए दोनों बहनों के सौ भाई हुए।
४. भरत और बाहुबल बड़े थे। शेष अट्ठानवे उनसे छोटे थे। वे अत्यंत कुशल