Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 18
________________ शुद्धमान क्रिया करे तो अधिक से अधिक तीन महिने में नाडी शुद्धि होती है। वैसे वांचन या अनेक शास्त्र श्रवण तो वर्षों तक करते रहो क्रियान्वित न हो वहां तक लाभ नहीं होता। जहां तक स्वयम् अनुभव न हो वहां तक ध्यान की शुद्धि नहीं होती। ध्यान साधना में भी अनेक विघ्न आना संभव है अतः विघ्नजय किये बगैर आगे गति नहीं हो पाती। विघ्नों में सबसे बड़ा विघ्न है संदेह, जिसका संदेह विलय न हो वह आगे गति करने योग्य नहीं होता, ऐसे संदेह बहुत आगे बढ़े हुए को भी होना संभव है, वह निराकरण और अनुभव होने पर ही मिटता है, कथन श्रवण वांचन मनन से भी सन्देह का नष्ट होना कठिन है, किन्तु अनुभव से क्षणमात्र में संदेह विलय हो जाता है। योग साधन से स्वरज्ञान-सूर्यस्वर, चन्द्रस्वर और सुष्मना का ज्ञान होता है अन्य योगकी क्रियाओं में इसका मिश्रण, तत्त्व, पहिचान, गति वायु के रंग और वायुवहन का प्रमाण जान लिया तो त्रिकाल ज्ञानी हो सकोगे। भूत भविष्य का वर्णन तो मामूली बात है, परन्तु मनोभाव भी जान सकोगे इतने दरजे पहुंचने पर विश्राम पाये तो स्मरण रखना वह विराम तुम्हें स्थान भ्रष्ट कर देगा, और आगे गति न कर सकोगे। आप पूछेगे.ध्यान क्रिया में प्राणायाम का क्या सम्बन्ध है ? ध्यान मनोनिग्रह पर आधार रखता है। बात ठीक है, क्रिया प्रक्रिया जिन नाड़ी तंतुओं द्वारा होती है उनकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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