Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 42
________________ रहता है, निज देह पर ममत्व नहीं रखता वही योगी मन पर अंकुश रख सकता है। श्रुत ज्ञान के पारंगत वर्तमान में दृष्टि गत नहीं होते तथापि अल्प श्रत ज्ञानी अथवा योग पथ के अभ्यासी अवलम्बी योगाभ्यास के अधिकारी अवश्य होते हैं, जैसे यथाख्यान चारित्र पालनेवाले वर्तमान में दृष्टिगत नहीं होते परन्तु चारित्र पालने वाले तो विद्यमान हैं, साधक का अभाव है, प्ररंच पथ प्रदर्शक विद्यमान है, इस न्याय से योग साधन सम्पन्न वाली आत्मा योगाभ्यास के योग्य होती है। योग के आठ अंग, आठ दृष्टि, आठ सिद्धि जिनके भेद भेदान्तर जानने योग्य हैं, जो महामना योगीश्वर की सेवा कर प्राप्त करना चाहिए। -निवेदक चंदनमल नागौरी छोटी सादड़ी (मेवाड़) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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