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गाड़कर बीच में गुरु श्री की पालखी रखी गई। पालखी के आसपास चन्दन की लकड़ियाँ चुनी गईं । इन्द्र महाराज ने भी उस समय इतनी अधिक वर्षा की कि जल का कोई पार न रहा । आग स्वतः आपश्री के दाहिने पैर के अँगूठे में से प्रकट हुई। शरीर के ऊपर के उपकरण, ध्वजा और जमीन में गाड़े हुए चार नीम के खूटे वगैरह अखंड बने रहे, केवल शरीर ही जलकर भस्म हुआ। उपकरण तथा ध्वजा को लोग प्रसाद रूप से ले गये। नीम के चारों सूखे खूटे भविष्य में चार नीम के वृक्ष
ए। मांडोली में दाह-संस्कार वाली जगह पर गुरुश्री की देवली बन गई है। देवली में गुरुश्री की चरणपादुका पधराई गई है। जब गुरुदेव की तिथि आती है तब वहाँ प्रति वर्ष बड़ा मेला भरता है । हजारों दर्शनार्थी उलट पड़ते हैं। दर्शनार्थ आने वाले प्रत्येक मनुष्य को मांडोली में प्रति वर्ष जिमाया जाता है। उस दिन गुरु श्री के चरणों से प्रातःकाल खास समय पर दूध तथा गंगा जल बहता है। जगत्गुरु आचार्यदेव श्रीविजयशान्ति सूरीश्वरजी भगवान् उस दिन जहाँ कहीं भी होते हैं वहाँ से पधारकर दिन में किसी समय किसी एक को दर्शन देते हैं। __श्रीधर्मविजयजी भगवान् देवलोक पधारने के बाद भी कभी-कभी अपने परभक्तों को दर्शन देते हैं ।
उपरोक्त सारी वस्तुस्थिति अभी भी मांडोली में विद्यमान है। केवल नीम का एक वृक्ष अभी हाल में अदृश्य हो गया है और तीन वृक्ष मौजूद हैं।
श्रीधर्मविजयजी भगवान् के शिष्य महान् तपस्वी महात्मा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com