Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 87
________________ आचार्य देव की स्तुति (रचयित्री-परम विदुषी, प्रखर पंडिता श्री हीराकुंवर बहिन, न्यायतीर्थ, व्याकरणतीर्थ, वेदान्ततीर्थ, सांख्यतीर्थ, कलकत्ता) त्रोटकवृत्तम् समतारस धाम ! गुरो ! समतां, विदधातु सदा मम चित्तकजे । तम संशय नाशनभानुसमः,गुरुशान्ति मुनीश! जयोऽस्तु सदा॥२॥ अर्थ समता रस के धाम हे गुरुदेव ! मेरे चित्त रूपी कमल में समता भाव उत्पन्न करिये। हे गुरुदेव ! शान्ति मुनीश्वर ! आप संशय रूप अन्धकार को हटाने में सूर्य सदृश हैं । हे भगवन् ! आपकी सदा जय हो। समशान्तसुधारस भावमयं, जगताप विनाशन मेघ समम् । जन दुःखहरं मधुरं सुखदं, जग पूजित देव! तवोऽस्ति वचः ।।२।। अर्थ-विश्वपूज्य हे गुरुदेव ! समभाव एवं शान्तिप्रधान आपका वचन सुधारस रूप है एवं भावमय है। जगत के ताप को शान्त करने में वह मेघ के समान है। वह मनुष्यों के दुःख दूर करने वाला है, मधुर है और सुख का देने वाला है । भवरोगलयं शिवशान्तिकरं, भयशोकशमं यशहर्षप्रदम् । भुवनार्तिहरं जनकामभरं, जगपूज्य सदा तव भक्ति रसम् ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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