Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 92
________________ अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया । चक्षरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥ अर्थ--ज्ञान रूपी अंजन की शलाका द्वारा जिसने अज्ञान तम से अन्धे बने हुए की आँख खोल दो ऐसे श्री सद्गुरु को नमस्कार हो। स्थावरं जंगम व्याप्तं यत्किंचित् सचराचरम् । त्वं पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ अर्थ--स्थावर और जंगम जीवों से व्याप्त जो यह चराचर जगत् है उसको जिसने त्वं पद अर्थात् आत्मा रूप से दिखलाया ऐसे श्री गुरु भगवान् को नमस्कार हो । अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥ अर्थ--जो ज्ञान रूप से प्रखण्ड मण्डलाकार चराचर जगत् में व्याप्त है उसके (परमेश्वर के) स्थान को अर्थात् मुक्ति पद को जिसने बतलाया ऐसे श्री गुरुदेव को नमस्कार हो। चिन्मयं व्यापितं सर्वे त्रैलोक्यं सचराचरम । असि पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।। अर्थ-सचराचर अखिल त्रिलोकी में जो ज्ञान रूप से व्याप्त हैं ऐसे 'असि पद' रूप परमात्मस्वरूप का जिसने दर्शन कराया ऐसे श्री सद्गुरु को नमस्कार हो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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