Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 69
________________ ४२ प्रात्मारामजी महाराज परिव्राजकाचार्य, दर्शननिधि, एम० ए०, विद्यावारिधि, व्याख्यान वाचस्पति एवं प्रसिद्ध हिस्टोरियन (इतिहासज्ञ)साउथ केनेडा का लिखा हुआ एक आदर्श चित्र हे सद्गुरु भगवान् ! आप पवित्र से भी पवित्र हो इसलिये हे भगवन् ! आपका मिलना जगत भर के सब पवित्र पदार्थों के मिलन से भी विशेष है। __ आप एक हो, आप अनन्त हो, प्रभो! आप शिव हो, आप शक्ति हो, आप कृष्ण हो, आप ईश्वर हो, आप निर्गुण हो और आप सगुण हो, और इन दोनों से परे हो--प्राप पवित्र और सत्य से भी आगे हो--आप बहुत ही बड़े हो, आप सर्वशक्तिमान् हो, आप सर्वस्व हो और सबसे भी परे हो। आपको पुण्य और पाप भी स्पर्श नहीं कर सकते हैं क्योंकि आप इन दोनों से परे हो।। आपको पहचानने के लिये प्रयास करें तो लाखों जन्म की आवश्यकता है। किन्तु आपकी कृपा हो जाय तो अल्प समय में आपको पहचाना जा सकता है। आप जगत् के कल्याण के लिये अदृश्य रूप से विश्व के चारों ओर दिव्य सन्देश पहुँचा रहे हो। हे प्रभो ! हे भगवन् ! आप सर्वोपरि और देवाधिदेव हो। (जैनध्वज अखबार, अजमेर, ता. १-२-१९३७) A brief note of the illustrious writings from renouned Sanatan Dharmacharya (monk) Shri Atmaramji Maharaj Paribrajakacharya, M. A., Scholor of Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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