Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 72
________________ ४५ हे गौतम ! जिसका प्रात्मा शुद्ध और पवित्र होता है-- उसी में मेरा धर्म रहता है। गीताजी में भी कहा है-यदि मरण समय थोड़ी भी शान्ति प्राप्त हो जाय तो समाधि मरण - होता है। जैसे कोई दिन भर घर या दूकान का काम करता रहे पर रेलगाड़ी छूटने के ठीक समय पर हाजिर हो जाय तो वह गाड़ी में बैठ जाता है पर यदि कोई दिन भर स्टेशन पर हाजिर रहे पर गाड़ी छूटने के समय बाहर चला जाय तो वह गाड़ी चूक जाता है। इसी प्रकार यदि मृत्यु के अन्त समय शान्ति समाधि प्राप्त हो जाय तो अवश्य समाधिमरण होता है। कच्छ-भुजपुर ली० सेठ मंगलदास c/o सेठ देवजी टोकरशी की कं०, भात बाजार, बम्बई नं. ३ संसार की महान् विभूति जगद्गुरु महान् योगीन्द्र विजयशान्ति सूरिश्वर महाराज अभी मारवाड़ में सरस्वती अरण्य में विराजते हैं। वहां एक दिन एक गृहस्थ ने एक हजार मनुष्यों को आमंत्रित किया था। किन्तु वहां पाँच हजार मनुष्यों के एकत्रित हो जाने से भोजन बनाने वाले चिन्तित होने लगे। योगिराज ने उन्हें विश्वास दिलाया कि तैयार किया हुआ भोजन, जितने पावेंगे उन सभी के लिये पर्याप्त होगा। इस प्रकार पाँच हजार मनुष्यों के भोजन कर लेने के बाद भी और पांच सौ आदमी धाप कर खायं इतना सामान बढ़ा । (सप्ताहिक, गुजराती पंच अहमदाबाद, ता० ६-१-१९२६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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