Book Title: Abuwale Yogiraj ki Jivan Saurabh
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 26
________________ हैं, ऐसे उदाहरण प्राचीन काल के शास्त्रों में प्रतिपादित हैं। ___ योगिराज महात्मा श्री शान्तिविजयजी साहब ध्यानी आत्मार्थी और शुद्ध जीवन व्यतीत करने वाले महायोगी थे, ध्यान और आत्म ज्ञान-पात्म दर्शन की ओर आप का पूर्ण लक्ष्य रहता था। आपका विशेष समय ध्यानस्थ अवस्था में ही जाता था । जंगल पहाड़ों में ही ध्यानस्थ रहते थे और आत्म हित प्रात्म उद्धार के लिए अति मात्रा में प्रयत्न करते थे, जब कभी आप सामान्य आत्मा को थोड़ा उपदेश देते तब उसका प्रभाव विशेष रूप से होता था। जैन संस्कार के कारण अहिंसा व्रत जो महाव्रत में और अणुव्रत में प्रथम गिना है, उसकी सादी व्याख्या भी आप असर कारक करते थे, वैसे तो अहिंसा का मार्ग अत्युत्तम है, जिसके अनेक भेदों में दश भेद मुख्य बताये भगवन्त परमात्मा का कथन अहिंसा की व्याख्या विश्वव्यापी थी, और उसका प्रभाव बलवान था जिनके उपदेश से लगभग. अड़सठ राजा जैन धर्म पालते थे और निर्वाण समय में अठारा राजवी पावापुरी में उपस्थित थे जिनमें से लगभग नौ राजवी तो निर्वाणके समय पौषध व्रत लिए हुए थे और पीछे के काल में भी कई वर्षों तक जैन धर्म राजा प्रजा का रहा, अहिंसा के अनुयायी राजवी हों तो प्रजा भी उनका अनुकरण करती है। राजधर्म हो तो प्रत्येक प्रकार से उन्नति होती है, वणिक धर्म हो धन संग्रह की ओर लक्ष्य रहता है। महामना पूज्यवर योगीवर्य की सेवा में देश देश के राजवी आते थे अमात्य-प्रधान का आगमन भी कम नहीं था। कई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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